सपना नहीं हक़ीक़त में जो देखता है अपनी मौत, वो कभी नहीं मरता !

Edited By Lata,Updated: 18 Jul, 2019 01:09 PM

the dream is not what its sight sees it never dies

सुकरात यूनान के एक महान दार्शनिक थे। उन्हें पश्चिमी दर्शन का जनक भी कहा जाता है। पश्चिमी सभ्यता के विकास में उनकी अहम भूमिका रही है।

ये नहीं देखा तो क्या देखा (Video) 
सुकरात यूनान के एक महान दार्शनिक थे। उन्हें पश्चिमी दर्शन का जनक भी कहा जाता है। पश्चिमी सभ्यता के विकास में उनकी अहम भूमिका रही है। उनके पिता पेशे से एक मूर्तिकार थे। कहते हैं कि जब सुकरात का ध्यान दर्शनशास्त्र की तरफ आकर्षित नहीं हुआ था, तब तक वो अपने पिता के कामों में हाथ बंटाया करते थे। ऐसा कहा जाता है कि यदि सुकरात को प्लेटो जैसे शिष्य न मिले होते तो शायद दुनिया सुकरात जैसे महान दार्शनिक के बारे में जान भी नहीं पाती। आज हम आपको सुकरात से जुड़े एक ऐसे किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में शायद ही कोई जानता होगा। 
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कहते हैं कि जब सुकरात को जहर देने का आदेश दिया गया। तब दूसरी तरफ जहर बनाने वाला, जहर पीस रहा था लेकिन सुकरात आराम से अपने मित्रों के साथ चर्चा कर रहे थे। जहर पीने का समय 5 बजे रखा गया था। उस समय से दो मिनट पहले सुकरात जहर बनाने वाले से कहते हैं कि ‘तुम देर न करो’। वह बोलता है कि ‘मैं चाहता हूं, आप जैसे महापुरुष दो सांस और ले लें, इसलिए जानबूझकर देर कर रहा हूं।’

सुकरात बोले- ‘यदि मैं थोड़ा ज्यादा भी जी भी गया तो कौन-सी बड़ी बात हो जाएगी? मैंने जीवन जीकर देख लिया, अब मृत्यु को देखना है। मैं मरने वाला नहीं हूं।’ 
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इसके बाद सुकरात पानी की तरह जहर पी गए और लेटकर शिष्यों से कहने लगे ‘जहर का असर अब पैरों से शुरू हुआ है और धीरे-धीरे जांघों तक आ चुका है। कमर तक उसका असर आ रहा है। रक्तवाहिनियों ने काम करना बंद कर दिया है। हृदय तक आ गया। वह धीरे-धीरे जहर के असर को बताने लगे और आगे कहने लगे कि मृत्यु इस शरीर को मारती है, मृत्यु जिसको मारती है, उसे मैं भली प्रकार देख रहा हूं।’
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सुकरात ने कहा जो मृत्यु को देखता है, उसकी मृत्यु नहीं होती और इस बात को तुम भी जान जाओ। सबके जीवन में मौत का दिन जरूर आएगी और इससे डरने की जरूरत नहीं है। मौत किसकी होती है? किस तरह होती है? उस समय साक्षी होकर जो मृत्यु को देखता है, वह मौत से परे अमर आत्मा को जानकर मुक्त हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो मौत का साक्षी होकर मौत से परे अपने अमर आत्म स्वरूप को जान लेता है, वह भय मुक्त हो जाता है।

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