Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Mar, 2018 10:13 AM
बात उस समय की है जब अकबर भारत का सम्राट था। उसकी सभा में एक दार्शनिक थे, उनका नाम था अबू अली। लोभ-लालच उन्हें ताउम्र छू भी नहीं सका।
बात उस समय की है जब अकबर भारत का सम्राट था। उसकी सभा में एक दार्शनिक थे, उनका नाम था अबू अली। लोभ-लालच उन्हें ताउम्र छू भी नहीं सका।
एक बार सहारा रेगिस्तान का एक अमीर उनके पास आया और बोला, ‘‘मैं आपके चरणों में बैठकर अध्ययन करना चाहता हूं।’’ मगर अबू ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें पढ़ाने के लिए तैयार हूं लेकिन सौ अशर्फियां लूंगा।’’
अमीर व्यक्ति उन्हें त्याग और तप की मूर्ति समझता था लेकिन अशॢफयां मांगने पर उसे अच्छा नहीं लगा। फिर भी उसने अशर्फियां देने की बात को स्वीकार कर लिया। वह लगन से ज्ञान प्राप्त करने लगा। जब शिक्षा पूरी हो गई तो उसने घर जाने की आज्ञा मांगी। तब अबू अली ने अलमारी से सौ अशर्फियां निकालीं और उसे वापस कर दीं। अमीर व्यक्ति हैरान हो गया।
उसने कहा, ‘‘जब आपको मेहनताना ही नहीं लेना था तो आपने यह शर्त क्यों रखी थी कि सौ अशॢफयां देने पर ही आप मुझे शिक्षा देंगे।’’
अबू अली ने कहा, ‘‘मैं यह परखना चाहता था कि तुम ज्ञान की कीमत देने की इच्छा रखते हो या नहीं। जो कीमत नहीं दे सकता है, उसे किसी से कुछ पाने का भी
हक नहीं है।’’
अमीर व्यक्ति अबू की विरक्ति देख भाव-विभोर हो गया।