जिस व्यक्ति में होता है ये गुण, वे विदेश जाकर कभी नहीं भटकता

Edited By ,Updated: 16 May, 2017 12:02 PM

the person who does this he never wanders abroad

एक बार स्वामी विवेकानंद का एक शिष्य उनके पास आया और उसने कहा, ‘‘स्वामी जी, मैं आपकी तरह भारत की

एक बार स्वामी विवेकानंद का एक शिष्य उनके पास आया और उसने कहा, ‘‘स्वामी जी, मैं आपकी तरह भारत की संस्कृति, दर्शन और रीति-रिवाज का प्रचार-प्रसार करने के लिए अमरीका जाना चाहता हूं। यह मेरी पहली यात्रा है। आप मुझे विदेश जाने की अनुमति और अपना आशीर्वाद दें।’’ 


स्वामी जी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा फिर कहा, ‘‘सोच कर बताऊंगा।’’ शिष्य हैरत में पड़ गया।


उसने फिर कहा, ‘‘स्वामी जी, मैं आपकी तरह सादगी से अपने देश की संस्कृति का  प्रचार करूंगा। मेरा ध्यान और किसी चीज पर नहीं जाएगा।’’ 


विवेकानंद ने फिर कहा, ‘‘सोच कर बताऊंगा।’’ 


शिष्य ने समझ लिया कि स्वामी जी उसे विदेश नहीं भेजना चाहते, इसलिए ऐसा कह रहे हैं लेकिन फिर भी वह उनके पास ही ठहर गया।


2 दिन बाद स्वामी जी ने उसे बुलाया और कहा, ‘‘तुम अमरीका जाना चाहते हो तो जाओ। मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।’’


शिष्य ने सोचा कि इतनी छोटी-सी बात के लिए 2 दिन सोचने में क्यों लगे। उसने अपनी यह दुविधा स्वामी जी को बताई। स्वामी जी ने कहा, ‘‘मैं 2 दिनों में यह समझना चाहता था कि तुम्हारे अंदर कितनी सहनशक्ति है। कहीं तुम्हारा आत्मविश्वास डगमगा तो नहीं रहा है लेकिन तुम 2 दिनों तक यहां रह कर र्निविकार भाव से मेरे आदेश की प्रतीक्षा करते रहे। न क्रोध किया, न जल्दबाजी की और न ही धैर्य खोया।’’


जिसमें इतनी सहनशक्ति और गुरु के प्रति प्रेम का भाव होगा, वह शिष्य कभी भटकेगा नहीं। मेरे अधूरे काम को वही आगे बढ़ा सकता है। किसी दूसरे देश के नागरिकों के मन में अपने देश की संस्कृति को अंदर तक पहुंचाने के लिए ज्ञान के साथ-साथ धैर्य, विवेक और संयम की आवश्यकता होती है। मैं इसी बात की परीक्षा ले रहा था। शिष्य स्वामी जी की इस अनोखी परीक्षा से अभिभूत हो गया।
 

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