Edited By Punjab Kesari,Updated: 20 Nov, 2017 12:50 PM
प्यासे को पानी पिलाना एवं दुख में भी सुख की आशा करना इंसान की प्रवृत्ति है। यदि वास्तव में हमें जीवन के रहस्य को पकडऩा है तो सबसे पहले खुद को समझना होगा।
प्यासे को पानी पिलाना एवं दुख में भी सुख की आशा करना इंसान की प्रवृत्ति है। यदि वास्तव में हमें जीवन के रहस्य को पकडऩा है तो सबसे पहले खुद को समझना होगा। स्वयं को देखने की रुचि जग गई तो दूसरों को देखने की बात खत्म हो जाएगी। महान बॉक्सर मोहम्मद अली ने कहा भी है कि सपनों को सच करने का सबसे अच्छा तरीका है कि जाग जाएं।
इस दुनिया में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो वर्तमान से ज्यादा भविष्य की चिंता करते हैं। भविष्य की चिंता करना कोई गलत बात नहीं है, किंतु यह चिंता जब दिल-दिमाग पर छा जाती है तो बीमारी का रूप ले लेती है।
आज तो है, कल रहेगा कि नहीं, की चिंता में बहुत से लोग अपना सुख-चैन गंवा बैठे हैं। यह एक तरह की मानसिक बीमारी है। इसका इलाज किसी वैद्य-हकीम के पास नहीं, इसका उपचार तो कोई ज्ञानी आदमी या कोई मनोवैज्ञानिक ही कर सकता है। बेंजामिन डिजरायली कहते हैं कि हालात इंसान के काबू में नहीं हैं लेकिन बर्ताव आदमी के अपने हाथ में है।
सुखी जीवन का पहला पायदान है संतोष। आज के युग में संतोषी व्यक्ति चिराग लेकर ढूंढने पर भी शायद नहीं मिलेंगे। कोई व्यापार को लेकर तो कोई परिवार को लेकर चिं ता में डूबा है। बेटों की चिंता में दुबले हुए जा रहे अनेक पिता आपको मिल जाएंगे। जबकि इस तरह की प्रवृत्ति आदमी को आलसी, निस्तेज और कायर बनाती है और स्वावलंबन की प्रवृत्ति पुरुषार्थी, तेजस्वी और साहसी बनाती है।
संतोष न होने से विकास भी असंतुलित होता है। मानवीयता का विकास न हो या उसके विकास की गति बहुत मंद हो तो एक बड़ा असंतुलन पैदा हो जाएगा। यही हो भी रहा है। धन की आमद बढ़ी है लेकिन चेतना का स्रोत सूखता जा रहा है। आदमी क्रूर, निर्दयी, कठोर और संवेदना शून्य होता जा रहा है। महान दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा है कि आपको सही मायने में आदमी बनना है तो अनुभव के सुख तक जाना होगा। पदार्थ का सुख आप प्राप्त कर सकें या नहीं, अनुभूति का सुख आपको मिल गया तो आप स्वयं को कभी गरीब नहीं मानेंगे।