Edited By Jyoti,Updated: 13 Jul, 2020 11:16 AM
एक सद्गृहस्थ ऋषि के घर में बालक का जन्म हुआ। उसके ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन कर ऋषि ङ्क्षचतित हो उठे। ग्रह के अनुसार बालक अल्पायु होना चाहिए था। उन्होंने अपने गुरुदेव से उपाय पूछा।
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एक सद्गृहस्थ ऋषि के घर में बालक का जन्म हुआ। उसके ग्रह-नक्षत्रों का अध्ययन कर ऋषि ङ्क्षचतित हो उठे। ग्रह के अनुसार बालक अल्पायु होना चाहिए था। उन्होंने अपने गुरुदेव से उपाय पूछा। उन्होंने कहा, ‘‘यदि बालक वृद्धजनों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करता रहे तो ग्रह-नक्षत्र बदलने की संभावना हो सकती है।’’
उन्होंने पुत्र को अपने से बड़े को देखते ही विनीत भाव से प्रणाम करने का आदेश दिया। जो भी कोई मिलता बालक हाथ जोड़कर उसे प्रणाम करने लगता। प्रणाम का उत्तर ‘आयुष्मान भव’ शब्द से मिलता।
एक बार संयोग से उधर सप्त ऋषि आ निकले। उसने सप्त ऋषियों को हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया। सप्त ऋषियों ने बालक की विनम्रता से गद्गद होकर आशीर्वाद दिया ‘आयुष्मान भव’-दीर्घ जीवी हो। सप्त ऋषियों ने उसे आशीर्वाद तो दे दिया पर उसी क्षण वे समझ गए कि यह ऋषि पुत्र तो अल्पायु है परंतु उन्होंने इसे दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद दे डाला है। अब उनका वचन असत्य निकला तो क्या होगा।
अचानक ब्रह्मा जी ने उनका संशय दूर करते हुए कहा, ‘‘वृद्धजनों का आशीर्वाद बहुत शक्तिशाली होता है। इस बालक ने असंख्य वृद्धजनों से दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद प्राप्त कर अल्पायु होने वाले ग्रहों को बदल डाला है। आप निश्चिंत रहें आपका वचन असत्य नहीं होगा।’’ —शिव कुमार गोयल