आज भी समाज में गूंजते हैं दादी जानकी के अनमोल वचन, इनका जीवन देता है प्ररेणा

Edited By Jyoti,Updated: 14 Apr, 2020 11:37 AM

the precious words of dadi janaki still resonate in the society

विश्व शांति दूत कहलाने वाली दादी प्रकाशमणी के बाद दादी जानकी ने ब्रह्माकुमारी संस्था की मुख्य प्रशासिका का कार्यभार 27 अगस्त 2007 को संभाला था।

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विश्व शांति दूत कहलाने वाली दादी प्रकाशमणी के बाद दादी जानकी ने ब्रह्माकुमारी संस्था की मुख्य प्रशासिका का कार्यभार 27 अगस्त 2007 को संभाला था। उसी वर्ष उन्होंने कैलिफोर्निया स्थित सैंटर आफ एक्सलैंस इन वीमेंस हैल्थ में मुख्य वक्ता के रूप में प्रभावशाली प्रवचन दिया।
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श्री सुखमणी साहिब का पाठ वह अमृतसर में पंजाब जोन की सेवा के दौरान श्री हरिमंदिर साहिब के दर्शन- दीदार करते समय किया करती थीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अनेक शास्त्रों के अध्ययन से ओत-प्रोत रही। युवावस्था से हैदराबाद सिंध में स्थापित महिलाओं की सर्वाधिक भागीदारी वाली संस्था में उन्होंने नर्स के रूप में भी सेवाएं दीं।

1974 में दादी जी ब्रिटेन पहुंचीं जहां उन्हें संस्था का केंद्र स्थापित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। यहां उन्होंने महिलाओं को आत्म-सम्मान जगाने एवं स्वावलंबी बनने की प्रेरणा प्रदान की। उनकी विद्वता के परिणामस्वरूप अनेक धर्मों एवं मतों से जुड़ी महिलाओं को अपने भीतर साहस जगाने तथा अपनी मदद आप करने की दृष्टि प्राप्त हुई और लाखों लोग आपसी भेदभाव भुलाकर, मिलजुल कर सौहार्दपूर्ण जीवन-यापन करने के लिए प्रेरित हुए।

130 देशों में स्थापित केंद्रों में दादी जी ने संस्था के विद्यार्थियों, अनुयायियों को बेसहारा लोगों, जेलों में बंद कैदियों, अस्पतालों में जाकर व्यसन मुक्ति अभियान चलाते भी देखा। मानवीय सेवा के संभवत: सबसे लम्बे कार्यकाल के दौरान दादी जी का सदैव यह प्रयास रहा कि मनुष्यों के सर्वांगीण विकास के लिए ज्यादा से ज्यादा अभियान चलाए जाएं जिससे उनका भावनात्मक, आध्यात्मिक, रचनात्मक एवं सामाजिक विकास संभव हो।

इसी क्रम में दादी जी ने 1993 में इंगलैंड में अंत: धर्म सद्भाव व समन्वय सम्मेलन की मेजबानी की जिसमें विभिन्न मतों के 600 लोगों ने हिस्सा लिया।
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1991 में सामाजिक विकास विषय पर यू.एन.ओ. द्वारा आयोजित सम्मेलन में दादी जी ने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। इसके कुछ वर्ष बाद उन्होंने लंदन में आयोजित त्रिदिवसीय सम्मेलन में मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया। ऐसे अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में उनकी भागीदारी रही। आबू रोड के शांति वन स्थित मुख्यालय में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेने वाले नामवर लोग आयु का शतक पूरा करने के बाद भी स्वस्थ दादी की स्मरणशक्ति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। स्वच्छता अभियान की ब्रांड एम्बैसेडर नियुक्त होने पर उन्होंने न केवल संस्था के माध्यम से स्वच्छ भारत, बल्कि स्वस्थ भारत का सपना साकार करने के लिए संस्था के सभी केंद्रों को मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन दिया।

जीवन के अंतिम वर्ष में भी दादी जी ने हजारों किलोमीटर हवाई यात्रा करके कार्यक्रमों में भाग लेने का कीर्तिमान स्थापित किया।

दादी जी के वचनों की चर्चा करें तो यह बात सामने आती है कि 9 जनवरी 2014 को उन्होंने कहा था कि एक मिनट, एक सैकेंड भी यह विचार नहीं आता कि मैं अकेली हूं। सदा ध्यान रखा है कि न कोई सेवा केंद्र मेरा है, न ही विद्यार्थी। मेरा कुछ नहीं। यह भी नहीं कह सकती कि मैंने यह काम किया है। इतना जरूर है कि एक बल एक भरोसा, निश्चय बुद्धि वैजयंती बना हुआ था, सो हुआ। सिर्फ संकल्प आया यह होना चाहिए सो हो गया। भावना से ही सारी विश्व सेवा हो रही है।

लगभग 11 वर्ष पूर्व (2 मार्च 2009) दादी जी ने कहा था कि सर्वशक्तिमान मेरा साथी है। देह के संबंध तो विनाशी हैं। आज नहीं तो कल न ये हमारे रहेंगे, न हम इनके रहेंगे। जब अर्थी उठेगी तो न यह घर मेरा रहेगा, न संबंधी रहेंगे। जिन्हें अपना समझते हैं, वही घर से बाहर कर देंगे। जब शरीर छोड़ेंगे तो एक ही साथी होगा। मैंने तो जीते जी सबको छोड़ दिया है। कहती हूं न तू मेरी, न मैं तेरी।
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1 जनवरी, 1916 को सिंध प्रांत में जन्म लेकर 21 वर्ष की आयु में नारी सशक्तिकरण की प्रतीक संस्था ब्रह्माकुमारी से जुड़ी दादी जानकी के अनमोल वचन सदियों तक गूंजते रहेंगे।

—राज सदोष

 

 

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