सावन के पावन रंग, मनाए जाते हैं इन त्योहारों के संग

Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Jul, 2017 07:27 AM

the sacred colors of saawan are celebrated with these festivals

धरती पर जल प्रत्येक प्राणी के लिए अमृत के समान है इसलिए जब आकाश से बारिश की बूंदों के रूप में जल धरती पर गिरता है तो समस्त जगत हर्षित हो जाता है। यही खुशी और उमंग प्रदर्शित करने के लिए भारत जैसे विभिन्न संस्कृतियों से रंगे देश में अनेक त्यौहार मनाए...

धरती पर जल प्रत्येक प्राणी के लिए अमृत के समान है इसलिए जब आकाश से बारिश की बूंदों के रूप में जल धरती पर गिरता है तो समस्त जगत हर्षित हो जाता है। यही खुशी और उमंग प्रदर्शित करने के लिए भारत जैसे विभिन्न संस्कृतियों से रंगे देश में अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं। आज भी सावन में पेड़ों पर झूले डाल कर तीज के गीत गाए जाते हैं, सावन में लड़कियां ससुराल से मायके बुलाई जाती हैं, रक्षा बंधन और नागपंचमी पर्व मनाए जाते हैं। सुहागिनों  के बीच लोकप्रिय हरियाली तीज ने तो आज व्यावसायिक रूप धारण कर लिया है। भगवान शंकर को पूरा सावन का महीना समर्पित है। सावन में पूरे देश में अपने-अपने रीति-रिवाजों के अनुसार अनेक त्यौहार मनाने की परंपरा है जो विभिन्न संस्कृतियों से जुड़ी आस्था के प्रतीक हैं।


सावन के सोमवार
यह महीना कुंवारी लड़कियों के लिए बहुत मायने रखता है। वे योग्य वर की प्राप्ति की कामना के लिए हर सोमवार को व्रत रखती हैं। इस मान्यता के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। जब अपने पिता दक्ष  द्वारा अपने पति भगवान शिव के अपमान के कारण सती ने हवनकुंड में कूद कर अपने प्राण त्यागे तो दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय और नैना के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। वह शिव को पति के रूप में पाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने नारद जी के कहने पर युवावस्था में ही सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत पालन किया और भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया। इसी मान्यता के आधार पर विवाह योग्य लड़कियां यह व्रत करती हैं।

 
हरियाली तीज
इसे श्रावणी या कजरी तीज भी कहते हैं। इस दिन महिलाएं हाथों में मेहंदी लगा व सोलह शृंगार कर झूलों पर झूलते हुए कजरी गीत गाती हैं। तीज का त्यौहार यू.पी., बिहार, राजस्थान व हरियाणा में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रख कर पार्वती जी व भगवान शिव की आराधना करती हैं। विभिन्न व्यंजनों की मीठी खुशबू इस त्यौहार की मिठास को और भी बढ़ा देती है।

 

नारियल या नारली पूर्णिमा
दक्षिणी भागों में नारली पूर्णिमा का आयोजन बड़े ही भव्य रूप से किया जाता है। इस दिन समुद्र को नारियल भेंट किए जाते हैं। सभी महिलाएं और लड़कियां समुद्र की पूजा के बाद समुद्र में नारियल प्रवाहित करती हैं। प्राचीन समय में समुद्र किनारे रहने वाले और समुद्र से ही जीविका चलाने वाले किसी आपदा से बचने के लिए समुद्र को नारियल अर्पित करके पूजन किया करते थे, यही प्रथा आज भी चल रही है।


अवनि अवित्तम् 
सावन पूर्णिमा को उड़ीसा, केरल, तमिलनाडु व महाराष्ट्र में ‘अवनि अवित्तम्’ के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार यजुर्वेदपाठी ब्राह्मणों का पर्व है। ये लोग पापों से बचने के लिए संकल्प लेते हैं और पवित्र स्नान करके नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। इसी दिन से खासतौर पर वेद अध्ययन आरंभ करने की भी परंपरा है।


पवित्रोपासना
गुजरात में सावन की पूर्णिमा को शिव उपासना के तहत जलाभिषेक किया जाता है। पूरे सावन जल चढ़ाने वाले इस दिन अंतिम बार शिव को जल अर्पित करते हैं और पंचगव्य में रूई की बाती डुबोकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।


कजरी पूर्णिमा
सावन अमावस्या के नौवें दिन कजरी नवमी से यह पर्व शुरू होता है। यह पर्व पुत्रों के लिए किया जाता है। नवमी के दिन महिलाएं खेतों से पत्तों में मिट्टी भर कर घर लाती हैं और उसमें पानी डालकर जौ बीजती हैं। इन सभी पत्तों को किसी अलग पवित्र स्थान पर रख कर 9 दिनों तक उसे पानी से सींचकर उनके अंकुरित होकर बड़ा होने का इंतजार किया जाता है व सावन पूर्णिमा के दिन किसी नदी या तालाब के बहते पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। यह पर्व विशेषकर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ में मनाया जाता है। 

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