संत ने अपनी आत्मा को मरने नहीं दिया, जानें फिर क्या हुआ परिणाम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Sep, 2017 11:23 AM

the saint did not let his soul die

यह उस समय की बात है जब रोमन सम्राट के अत्याचारों से वहां की जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। सम्राट के अत्याचारों का विरोध करने का साहस किसी ने किया भी तो उसको मौत की सजा सुना दी जाती थी। वहां के एक संत थे

यह उस समय की बात है जब रोमन सम्राट के अत्याचारों से वहां की जनता में त्राहि-त्राहि मची हुई थी। सम्राट के अत्याचारों का विरोध करने का साहस किसी ने किया भी तो उसको मौत की सजा सुना दी जाती थी। वहां के एक संत थे बाजिल। वह एक संत के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। वह एक कुटिया में रहते थे और सादा जीवन व्यतीत करते थे। वही एक आदमी थे जो सम्राट के अत्याचारों का खुल कर विरोध करते थे लेकिन सम्राट उनके खिलाफ कोई कड़ा कदम उठाने का साहस नहीं कर पाते थे।


एक दिन सम्राट ने अपने दूत को संत बाजिल के पास भेज कर कहलवाया कि वह हमारा विरोध करना बंद कर दें इसके बदले उन्हें राज्य की तरफ से इतनी सम्पत्ति दी जाएगी कि वह जिंदगी भर आराम से गुजर-बसर कर सकते हैं। दूत संत बाजिल के पास पहुंचा और उनको सम्राट का आदेश सुना कर कहा, ‘‘महाराज इससे अच्छा अवसर नहीं आएगा। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। अक्लमंदी इसी में है कि आप सम्राट का विरोध करना छोड़कर सुख की जिंदगी जिएं अन्यथा किसी दिन अगर सम्राट को क्रोध आया तो वह आपको राज्य से बाहर कर देंगे।’’


संत ने कहा, ‘‘भाई तुम ठीक कहते हो। मैं मालामाल हो जाऊंगा। सुख की जिंदगी जिऊंगा और मेरे अकेले विरोध से सम्राट सुधरेंगे भी नहीं लेकिन मैंने सम्राट के अत्याचार का विरोध करना छोड़ दिया तो मेरी आत्मा मर जाएगी। एक संन्यासी और देश का एक नागरिक होने के कारण मेरा कर्तव्य है कि मैं सम्राट को सही रास्ते पर लाने का प्रयास तब तक करता रहूं जब तक मेरी सांसें चल रही हैं। सम्राट से जाकर कहना कि बाजिल उनके उदार प्रस्ताव को मानने को तैयार नहीं है।’’


दूत की बातों का सम्राट पर इतना गहरा असर हुआ कि वह स्वयं संत बाजिल से मिलने गए और अपने अत्याचारों के लिए माफी मांगी।

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