परम अस्तित्व के बोध से धन्य हो गई आत्मा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Feb, 2018 02:37 PM

the soul was blessed with the realization of supreme existence

सत्य का ज्ञान जीवन में उजागर करके जन्मों-जन्मों की अज्ञानता के अंधकार को मिटाया जा रहा है, जिस अंधकार के कारण लोग भ्रमों और बंधनों में रहकर इस जीवन के सफर को तय करते आ रहे थे। जिस-जिस को भी इस ज्ञान का उजाला प्राप्त हुआ वही अपने आपको धन्य बता रहा है...

सत्य का ज्ञान जीवन में उजागर करके जन्मों-जन्मों की अज्ञानता के अंधकार को मिटाया जा रहा है, जिस अंधकार के कारण लोग भ्रमों और बंधनों में रहकर इस जीवन के सफर को तय करते आ रहे थे। जिस-जिस को भी इस ज्ञान का उजाला प्राप्त हुआ वही अपने आपको धन्य बता रहा है कि सही मायने में मेरा संसार में आना सफल हो गया। वर्ना मेरी जिंदगी ऐसे ही चली जाती, जैसे लाखों-करोड़ों लोग बिताकर चले जाते हैं, हमें भी सत्य का ज्ञान नहीं होना था। हम भी केवल प्रभु के नाम से वाकिफ रहते लेकिन ब्रह्मज्ञानियों की कृपा हुई कि वह ज्ञान की नजर दे दी, जिसके कारण नाम के आगे निकल गए और नामी की पहचान हो गई।


इस परम अस्तित्व की पहचान हो गई जिसे राम कह कर भी पुकार रहे थे, जिसे हम अल्लाह कह कर भी पुकार रहे थे, जिसे हम अकाल पुरख कह कर भी संबोधित कर रहे थे। ऐसे परम अस्तित्व का बोध हो गया इस आत्मा को और आत्मा धन्य हो गई। आत्मा को भी ठिकाना मिल गया, इसके बंधन भ्रमों के मिट जाने के कारण समाप्त हो गए तो इस तरह से आत्मा अपने आपको धन्य मान रही थी। साथ ही साथ इसी उजाले के कारण जो भेद वाले भाव थे वे मिट गए हैं। कितने-कितने मान्यताओं से युक्त, कितने वहम में पड़े हुए लोग जीवन जीते चले जा रहे हैं और उनके जीवन में यह सवेरा आया तो वे यही कह रहे हैं कि वाकई यह भी हमारे जीवन में ऐसा पड़ाव आया है जो हमारे जीवन को सरल बना रहा है। अब सरल महसूस होता है जीवन क्योंकि अब सत्य का आधार है और भेद वाले भाव मिट गए हैं। आज तक इसी अंधकार के कारण हम भेद करते थे, हम ऊंची जाति वाले और वे नीची जाति वाले, इस तरह से घृणा करते थे, नफरत करते थे। भक्तजन जो इस उजाले से युक्त हो जाते हैं वे भी यही मानते हैं कि- जाति-पाति पूछे नहीं कोई। हरि को भजे सो हरि का होई।


जाति-पाति की मान्यताओं से युक्त कितने भेदभाव हो रहे हैं, कितने-कितने शोषण होते आए हैं, कितने दमन होते आए हैं? वसुधैव कुटुंबकम की भावना से देखें तो सारी वसुधा में बसने वाले तमाम लोग इसी परमात्मा निरंकार प्रभु की संतान हैं। एक नूर से ही सारा जगत उपजा है। अवतार बाणी में हम पढ़ते हैं- इक्को नूर है सब के अंदर नर है चाहे नारी ए। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश, हरिजन इक दी खलकत सारी ए।।


एक ही खलकत सारी है चाहे ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है, हरिजन है ये सब प्रभु-परमात्मा की संतानें हैं लेकिन अज्ञानता ने भ्रम डाल दिए, ऊंच-नीच की दीवारें खड़ी हो गईं, अभिमान-अहंकार में चूर हो गए और निकल पड़े दूसरों का दमन करने, जुल्मों-सितम करने। सत्गुरु कबीर जी कहते हैं कि- जाति का गरब मत कर मूर्ख गंवारा। इस गर्व से उपजे बहुत विकारा।।


यानी इस जाति का अभिमान, जिसे गर्व कहते हैं, ये बड़े विकारों को जन्म देता है। जाति का गर्व मत कर मूर्ख, तू मूर्ख भी हो गया, अहंकारी भी हो गया और भी कितने-कितने विकार पैदा हो जाते हैं। केवल अभिमान ही नहीं नफरत भी और साथ ही हिंसा भी। क्योंकि नफरत आ गई तो हिंसक भी होंगे ही, वे हिंसा के मार्ग पर चल पड़ते हैं। इधर महात्मा गांधी जी अहिंसा की बात करते हैं। जितना भी हम महावीर स्वामीजी, गौतम बुद्धजी आदि का जिक्र करते हैं तो ‘अहिंसा परमो धर्म:’ यही उनका नारा रहा और इसी मार्ग पर वे खुद चले।

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