आठ वर्षों तक करेंगे ये उपाय, पीढ़ियों तक घर में धन लक्ष्मी का वास बना रहेगा

Edited By ,Updated: 15 Apr, 2017 09:48 AM

these measures will be done for eight years

भारतीय जन जीवन में पेड़-पौधों व वनस्पतियों में देवत्व की अवधारणा आदिकाल से चली आ रही है। कुछ ऐसे भी वृक्ष हैं जो हर समय प्राण वायु (आक्सीजन) प्रदान करते हैं। पीपल, बड़, तुलसी ऐसे ही पेड़-पौधे हैं। भारत

भारतीय जन जीवन में पेड़-पौधों व वनस्पतियों में देवत्व की अवधारणा आदिकाल से चली आ रही है। कुछ ऐसे भी वृक्ष हैं जो हर समय प्राण वायु (आक्सीजन) प्रदान करते हैं। पीपल, बड़, तुलसी ऐसे ही पेड़-पौधे हैं। भारत में पंचवट यानी पांच वृक्षों की विशेष पूजा उनमें विद्यमान देवत्व गुणों के कारण ही की जाती है। वे हैं पीपल, गूलर, बड़ (बरगद), पावाड़ और आम। इनमें पीपल यानी अश्वत्थ का स्थान सर्वोपरि है। श्रीमद्भागवत गीता में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण वृक्षों में वे पीपल हैं, ऐसा कहते हैं। उन्होंने अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष को अपनी विभूति बतलाया है। (गीता -10/26), श्रीमद्भागवत (पुराण) के अनुसार द्वापर युग में परमधाम गमन के समय श्री कृष्ण इस परम पवित्र वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यानावस्थित हुए थे। 


स्कंदपुराण के अनुसार अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में भगवान श्री हरि और फलों में सभी देवों से युक्त अच्युत सर्वदा निवास करते हैं। यह वृक्ष मूर्तमान श्री विष्णु स्वरूप है। संत महात्मा इस वृक्ष की सेवा करते हैं। इसका आश्रय करना मनुष्यों के सहस्रों पाप का नाशक तथा अभीष्टों का साधक है।


अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष के आरोपण का पुण्य अक्षय होता है। मान्यता है कि इस लोक में अश्वत्थ वृक्ष के छायातल में जिस प्रकार प्राणी स्वच्छंदता से भ्रमण करते हुए सुख प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार इस वृक्ष का आरोपणकर्ता मृत्यु के पश्चात विराम और विश्राम प्राप्त करता हुआ नियंता के निकट निवास करने का सौभाग्य प्राप्त कर लेता है। उन्हें न यमलोक की यंत्रणा हो सकती है न दारुण संताप की।


पीपल वृक्ष को बिना प्रयोजन काटना अपने पितरों को काट देने के समान है। ऐसा करने से वंश की हानि होती है। यज्ञादि पवित्र कार्यों के उद्देश्य से सूखी या गीली काष्ठ काटने का कोई दोष नहीं है, बल्कि अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है। अश्वत्थ रोपण करने वाले व्यक्ति की वंश-परम्परा कभी समाप्त नहीं होती, अपितु अक्षय रहती है। इसके आरोपण से समस्त ऐश्वर्य एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है तथा पितृगण नरक से छूटकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं।

अश्वत्थ स्थापितो येन तत्कुलं स्थापितं तत:।
धनायुषां समृद्धिस्तु पितृन् बेलशात् समृद्धरेत।।


पीपल वृक्ष की पूजा करने से समस्त देवता पूजित हो जाते हैं। 


घिन्नो येन वृक्षाश्वत्थद्येदिता:पितृ देवता:।
यज्ञार्थ छेदितोश्वत्थे हाक्षयं स्वर्गमाप्रुयात्।।
अश्वत्थ: पूजितो यत्र पूजिता: सर्व देवता।।


अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की परिक्रमा करने एवं प्रतिदिन उस पर जल चढ़ाने से नियमित दीपक जलाने से सभी अशुभ ग्रहों का प्रभाव नष्ट हो जाता है। इस वृक्ष के मूल में थाला (गड्ढा) बनाकर वैशाख मास में यानी ग्रीष्म ऋतु में जल डालने से महान फल की प्राप्ति होती है। इस वृक्ष के दर्शन एवं श्रद्धापूर्वक नित्य प्रति नमन से संपदा में वृद्धि तथा दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है। अश्वत्थ वृक्ष की प्राय: तीन बार प्रदक्षिणा करने का विधान है। पीपल की पूजा एवं उसका स्पर्श प्राय: शनिवार को ही विशेष रूप से किया जाता है। वैसे प्रतिदिन ही इसका दर्शन व पूजन हितकारी है।


‘ज्ञान भास्कर’ नामक ग्रंथ के अनुसार प्रबल वैधव्य योगवाली एक कन्या को महर्षि शौनक ने अश्वत्थोपनयन नामक महान व्रत की महिमा बतलाते हुए कहा कि किसी शुभ दिन में यदि कोई पुरुष पीपल वृक्ष का आरोपण कर उसे आठ वर्षों तक निरंतर जलदान करें, उसका पुत्रवत पालन एवं पोषण करता रहे। तब उस वृक्ष का यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न कर यदि उसका विधिवत पूजन किया जाए तो अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, पीढ़ियों तक घर में धन लक्ष्मी का वास बना रहता है और व्यक्ति कामयाबियों के शिखर को छूता चला जाता है।

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