बृहस्पतिवार को करें ये उपाय, आपकी जिंदगी के तारे होंगे बुलंद

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Jan, 2018 12:43 PM

these measures will be done on thursday

गोचर भ्रमणवश बृहस्पति आपकी राशि से दूसरे, पांचवें, सातवें, नौंवें और ग्यारहवें स्थान पर रहने से शुभ फल देते हैं। पंचम, सप्तम एवं नवमस्थ हो तो जातक की क्रियात्मक शक्ति प्रखर होती है। द्वितीय तथा एकादश स्थान में बृहस्पति विशेष धन, ऐश्वर्य तथा भौतिक...

गोचर भ्रमणवश बृहस्पति आपकी राशि से दूसरे, पांचवें, सातवें, नौंवें और ग्यारहवें स्थान पर रहने से शुभ फल देते हैं। पंचम, सप्तम एवं नवमस्थ हो तो जातक की क्रियात्मक शक्ति प्रखर होती है। द्वितीय तथा एकादश स्थान में बृहस्पति विशेष धन, ऐश्वर्य तथा भौतिक सुख-सुविधा प्रदान करता है। तुला में गतिशील गुरु मिथुन, मेष, कुंभ राशि के लिए क्रमश: पंचम, सप्तम एवं नवमस्थ रहेगा और कन्या, धनु राशि के लिए क्रमश: द्वितीय, एकादश स्थान में गति करेगा।  कर्क राशि के जातकों के लिए चतुर्थस्थ बृहस्पति इस अवधि में स्थान परिवर्तन, मानसिक उद्वेग, चित्त की अशांति, व्यवसाय में अस्थिरता तथा कुटुिम्बयों द्वारा यातना दिलाता है। गुरु के राशि परिवर्तन से इनके शुभाशुभ फलों से प्राय: सभी राशियां प्रभावित होंगी। गुरु के व्रत, दान, जप विष्णु सहस्त्रनाम आदि के पाठ करने से इनकी अशुभता में कमी आकर शुभ फलों की प्राप्ति होती है।


बृहस्पति की विंशोत्तरी महादशा चक्र में सोलह वर्ष की अवधि होती है। जन्मकुंडली में गुरु की अच्छी स्थिति होने पर यदि गोचर में भी गुरु अनुकूल हो तो बाल्यकाल में बृहस्पति की महादशा जातक को मेधावी विद्यार्थी बनाती है। वयस्क अवस्था में यह जातक को सुशील पत्नी, संतान, धन तथा तीर्थयात्रा देती है। वृद्धावस्था में बृहस्पति की महादशा आने पर जातक को सत्संग, धार्मिक धर्म चर्चा, दैवीय अनुकम्पा तथा परिवार सुख मिलता है। पुत्र-पौत्र तथा अन्य कुटुंब जन जातक का सम्मान करते हैं। वह अपने समाज में भी प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। 


व्रत- वीरवार का व्रत रखें। भीगी चने की दाल गाय को खिलाएं। पांच पीले वस्त्रों के साथ विष्णुपुराण का दान करें। केसर का तिलक लगाएं।


गुरु की प्रिय वस्तुआें- शर्करा, शहद, घी, हल्दी, पीत वस्त्र, धार्मिक पुस्तक, पुखराज, नमक, पीत पुष्प, केसर, पीले लड्डू आदि का सामर्थ्य के अनुसार दान करें।


मंत्र- ‘ऊॅं ऐं क्लीं बृहस्पतये नम:’’ अथवा ’’ऊ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:’’ मंत्र का जप करें। जप संख्या 19000 है। 


गुरुवार (वीरवार) व पूर्णिमा को विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। गजेन्द्र मोक्ष का पाठ नियमित रुप से करें।


केले की जड़ का तावीज बनाकर विधिपूर्वक धारण करें।


पिता, गुरु, ब्राह्मण एवं बुजुर्गों की सेवा करें। आशीर्वाद प्राप्त करें। कन्या को भोजन कराएं। 


गौशाला में दान दें। प्रथम रोटी गाय को खिलाएं।


केला अथवा पीपल वृक्ष के वीरवार को दर्शन करें। इन्हें हल्दी मिश्रित जल से सींचें और घी का दीपक जलाकर शुभ प्राप्ति की प्रार्थना करें।


वीरवार को केलों का दान करें। स्वयं इस दिन केले नहीं खाएं।

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