Edited By Jyoti,Updated: 29 Jun, 2018 01:27 PM
एक जिज्ञासु इंसान कबीर के पास पहुंचा। उसने कबीर से पूछा कि मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि संन्यासी बनूं या फिर गृहस्थ जीवन में जाऊं। अब आप ही बताएं। कबीर ने कहा कि जो भी बनो आदर्श बनो।
एक जिज्ञासु इंसान कबीर के पास पहुंचा। उसने कबीर से पूछा कि मैं तय नहीं कर पा रहा हूं कि संन्यासी बनूं या फिर गृहस्थ जीवन में जाऊं। अब आप ही बताएं। कबीर ने कहा कि जो भी बनो आदर्श बनो। इसके लिए उन्होंने उदाहरण के लिए 2 घटनाएं दिखाईं। कबीर ने अपनी पत्नी को बुलाया। भरी दोपहरी थी, चारों ओर प्रकाश था लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी से दीपक जलाकर लाने को कहा ताकि वह कपड़ा अच्छी तरह बुन सकें। पत्नी दीपक लाई और बिना कुछ बहस किए चली गई।
कबीर ने कहा, ‘‘देखो भाई, गृहस्थ बनना चाहते हो तो परस्पर ऐसे विश्वासी बनना कि दूसरे की इच्छा ही अपनी इच्छा बने। ऐसे गृहस्थ बनो कि तुम्हारे कहने पर घर वाले रात को दिन और दिन को रात मानने को तैयार हों, अन्यथा रोज के झगड़ों का कोई फायदा नहीं।’’
इसके बाद कबीर दूसरा उदाहरण जिज्ञासु को देना चाहते थे, इसके लिए वह उसे एक टीले पर लेकर गए।
टीले पर एक वृद्ध महात्मा रहते थे। वह कबीर को जानते नहीं थे। कबीर ने महात्मा को नमन किया और उनसे पूछा, ‘‘आपकी आयु कितनी है?’’
महात्मा ने जवाब दिया, ‘‘80 वर्ष।’’
इसके बाद कबीर दूसरी बातें करने लग गए और बाबा जी से पूछा, ‘‘आप अपनी आयु क्यों नहीं बता रहे हैं।’’
महात्मा ने कहा, ‘‘बेटा, अभी तो मैंने सभी को बताया कि मैं 80 वर्ष का हूं, लगता है तुम भूल गए हो।’’
कबीर टीले की आधी चढ़ाई उतर गए और महात्मा को जोर से फिर पुकारा तथा उनको नीचे आने के लिए कहा। वह हांफते-हांफते कबीर के पास नीचे चले आए और बुलाने का कारण पूछा तो कहा, ‘‘एक जरूरी सवाल पूछना भूल गया था। आपकी उम्र कितनी है।’’
महात्मा को कबीर की बातों पर तनिक भी क्रोध नहीं आया और कहा, ‘‘80 वर्ष है और फिर हंसते हुए वापस लौट गए।’’