इस पाप को कोई पुण्य नहीं धो सकता, रहें सावधान! अन्यथा भोगना पड़ेगा घोर नरक

Edited By ,Updated: 20 Mar, 2017 11:21 AM

this sin can not wash any virtue be careful

आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण का जो व्यक्ति अनुसरण कर ले वह इस लोक में ही नहीं परलोक में भी सुख पाता है।

आदिकाव्य वाल्मीकि रामायण का जो व्यक्ति अनुसरण कर ले वह इस लोक में ही नहीं परलोक में भी सुख पाता है। बुद्धिमान व्यक्ति पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है, यानी उनसे आजाद हो जाता है। इसलिए हर हाल में एक जैसा व्यवहार करने वाले योग में लग जाना चाहिए। यह अभ्यास ही कर्म के बंधन से बाहर निकलने का उपाय देगा। जब कोई व्यक्ति कर्म करता है तो उसे कर्म का फल मिलता है। अच्छे काम पुण्य व बुरे काम पाप फल देते हैं। कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे किसी दूसरे का दिल दुखे। वाल्मीकि जी आदिग्रंथ रामायण में कहते हैं


मातरं पितरं विप्रमाचार्य चावमन्यते।
स पश्यति फलं तस्य प्रेतराजवशं गतः।।


अर्थात: माता-पिता, गुरु-आचार्य और ज्ञानी-पंडित, कभी भी इनका अपमान करना तो दूर, सोचना भी नहीं चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति पाप नहीं बल्कि महापाप का अधिकारी बनता है। जीवनकाल में जितना भी पूजा-पाठ या दान-धर्म कर लें परलोक में घोर नरक भोगना ही पड़ता है। इस पाप को कोई पुण्य नहीं धो सकता।


प्रकृति के नियमानुसार यह मानव शरीर विशेष रूप से आत्म साक्षात्कार के लिए मिला है जिसे कर्मयोग, ज्ञानयोग या भक्तियोग में से किसी एक विधि से प्राप्त किया जा सकता है। योगियों के लिए यज्ञ सम्पन्न करने की कोई आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि वे पाप-पुण्य से परे होते हैं किन्तु जो लोग इंद्रियतृप्ति में जुटे हुए हैं उन्हें पूर्वोक्त यज्ञ-चक्र के द्वारा शुद्धिकरण की आवश्यकता रहती है। भविष्य पुराण के अनुसार पृथ्वी पर जन्म लेने वाले हर प्राणी को तन, मन और वचन से किए गए बुरे कर्मों का फल भोगना पड़ता है।

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