Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Jun, 2018 08:30 AM
घर के मुखिया को अभिमान हो गया कि उसके बिना परिवार का काम नहीं चल सकता। उसकी छोटी-सी दुकान थी। उससे जो आय होती, उससे उसके परिवार का गुजारा चलता था। चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था, इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता।
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घर के मुखिया को अभिमान हो गया कि उसके बिना परिवार का काम नहीं चल सकता। उसकी छोटी-सी दुकान थी। उससे जो आय होती, उससे उसके परिवार का गुजारा चलता था। चूंकि कमाने वाला वह अकेला ही था, इसलिए उसे लगता था कि उसके बगैर कुछ नहीं हो सकता। वह लोगों के सामने डींग हांका करता था। एक दिन वह एक संत के सत्संग में पहुंचा। संत कह रहे थे, दुनिया में किसी के बिना किसी का काम नहीं रुकता। यह अभिमान व्यर्थ है कि मेरे बिना परिवार या समाज ठहर जाएगा।
सत्संग पूरा होने के बाद मुखिया ने संत से कहा, ‘‘मैं दिन भर कमाकर जो पैसे लाता हूं, उसी से मेरे घर का खर्च चलता है। मेरे बिना तो मेरे परिवार के लोग भूखे मर जाएंगे।’’
संत बोले, ‘‘यह भ्रम है। हर कोई अपने भाग्य का खाता है।’’
यह सुनकर मुखिया ने इसे प्रमाणित करने को कहा।
संत ने कहा, ‘‘ठीक है। तुम बिना किसी को बताए घर से एक महीने के लिए गायब हो जाओ।’’
उस व्यक्ति ने ऐसा ही किया। संत ने यह बात फैला दी कि उसे बाघ ने अपना भोजन बना लिया है। उसके परिवार वाले कई दिनों तक शोक संतप्त रहे। गांव वाले आखिरकार उनकी मदद के लिए सामने आए। एक सेठ ने उसके बड़े लड़के को अपने यहां नौकरी दे दी। गांव वालों ने मिलकर लड़की की शादी कर दी। एक व्यक्ति छोटे बेटे की पढ़ाई का खर्च देने को तैयार हो गया।
कुछ समय बाद मुखिया छिपता-छिपाता रात के वक्त अपने घर आया। घरवालों ने भूत समझकर दरवाजा नहीं खोला, जब वह बहुत गिड़गिड़ाया और सारी बातें बताई, तो उसकी पत्नी ने दरवाजे के भीतर से ही उत्तर दिया, ‘‘हमें तुम्हारी जरूरत नहीं है। अब हम पहले से ज्यादा सुखी हैं।’’
उस व्यक्ति का सारा अभिमान चूर-चूर हो गया।
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