Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Jan, 2018 09:56 AM
श्लोक: नील वर्णाम त्रिनयनाम ब्रह्म शक्ति समन्विताम। कवित्व बुद्धि प्रदायिनीम नील सरस्वतीं प्रणमाम्यहम॥
क्षेत्र किवंदती व शाबर तंत्र के अनुसार नील के पौधे की उत्पत्ति श्मशान में हुई थी। नील का पौधा मृत्यु घट पर भी जीवन ढूंढ लेता है। नील...
श्लोक: नील वर्णाम त्रिनयनाम ब्रह्म शक्ति समन्विताम। कवित्व बुद्धि प्रदायिनीम नील सरस्वतीं प्रणमाम्यहम॥
क्षेत्र किवंदती व शाबर तंत्र के अनुसार नील के पौधे की उत्पत्ति श्मशान में हुई थी। नील का पौधा मृत्यु घट पर भी जीवन ढूंढ लेता है। नील एक सिद्धांत पर टिका है कि जहां मृत्यु शून्य की और ले जाती है उसी शून्य से जीवन की भी उत्पत्ति होती है। नील का पौधा भ्रचक्र को संबोधित करता है की जीवन के बाद मृत्यु है और मृत्यु के पुनः जीवन है। इसी को जीवन मरण का कालचक्र भी कहते हैं। तंत्र शास्त्र के अनुसार नील रंजक देवी नील सरस्वती को संबोधित करता है। तथा शास्त्रों में नील सरस्वती को देवी तारा कहकर संबोधित किया गया है। देवी तारा दस महाविद्याओं में से एक है तथा इन्हें ही सरस्वती का तांत्रिक स्वरुप कहा गया है।
नील एक मशि है जिसमें नीला रंजक प्रयोग होता है। वास्तविकता में यह एक रंजक है जिसे सूती कपड़ो में पीलेपन से निजात पाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। प्राकृतिक दृष्टि से नील पादपों से तैयार किया जाता है। नील रंजक का मूल प्राकृतिक स्रोत एक पादप है। नील के पौधे का उपयोग मिटटी को उपजाऊ बनाने के लिए भी किया जाता है। कुछ नील के पौधे अफीम नाम से जाने जाते हैं। नील का पौधा बैंगनी रंग के फूल और फली को भी जन्म देता है जिसके बोने से भूमि की उर्वरा-शक्ति बढ़ती है। इसकी पत्तियों के प्रसंस्करण से नील रंजक प्राप्त किया जाता है।
श्लोक: नीलजीमूतसङ्काशाय नीललोहिताय नीलवसनाय नीलपुष्पविहाराय चन्द्रयुक्ते चण्डालजन्मसूचकाय राहवे प्रणमाम्यहम॥
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार नील रंजक पर छाया ग्रह राहू का अधिपत्य है। राहू को चन्द्रमा का उत्तरी ध्रुव भी कहा जाता है, इस छाया ग्रह के कारण अन्य ग्रहों से आने वाली रश्मियां पृथ्वी पर नहीं आ पाती हैं और जिस ग्रह की रश्मियां पृथ्वी पर नहीं आ पाती हैं, उनके अभाव में पृथ्वी पर तरह के उत्पात होने चालू हो जाते हैं। यह छाया ग्रह चिंता का कारक ग्रह कहा जाता है। राहू को लेकर ज्योतिष शास्त्र में दो अलग मत है पहले मतानुसार राहू ग्रह पर देवी नील सरस्वती अर्थात तारा का अधिपत्य है इसका कारण नीला रंग है। दुसरे मतानुसार राहू पर देवी छिन्मस्ता का आधिपत्य है जिनका रंग नीलिमा लिए हुए जंग लगा हुआ है। तारा के रूप में राहू गूड ज्ञान अर्थात तंत्र का प्रतीक है। वहीं छिन्मस्ता के रूप में राहू अघोरता का प्रतीक है।
ज्योतिषशास्त्र में नील के प्रयोग से कुछ विशिष्ट उपाय बताए गए हैं जिससे आप कपड़े धोने के साथ-साथ अपनी किस्मत भी चमका सकते हैं-
देवी नील-सरस्वती पर नील मिले सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित करने से दुर्भाग्य दूर होता है।
नील से नीले किए हुए अक्षत देवी छिन्मस्ता पर अर्पित करने से अकस्मात धन-लाभ होता है।
सफेद कपड़ो को नील देने से चंद्रमा शुभ होकर मानसिक विकार दूर करता है।
नील व नमक से पोछा लगाने से घर के वास्तुदोष दूर होते हैं।
अलक्ष्मी (दरिद्रता) को दूर रखने हेतु दीपावली के दौरान चूने में नील मिलाकर पुताई की जाती है।
दुर्भाग्य से मुक्ति पाने के लिए घर के बहार नील से उल्टा स्वस्तिक बनाया जाता है।
नील से टॉयलेट साफ करने से राहू ग्रह के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।
घर के बहार नील और चूने से रंगोली बनाने से अलक्ष्मी घर से दूर रहती हैं।
टॉयलेट में नील फ्लश करने से आर्थिक नुक्सान से मुक्ति मिलती है।
नील, समुद्री नमक, तंबाकू और रांगा मरघट में दबाने से आयु में वृद्धि होती है।
आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल kamal.nandlal@gmail.com