Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jul, 2017 10:57 AM
जब भी निराशा आपको घेरती है तो आप खुद को कमजोर पाते हैं लेकिन खुद को यह भी बताइए कि आप इस निराशा का मुकाबला करेंगे। लोगों को दुख होता है और वे निराश भी हो जाते हैं। उन्हें
जब भी निराशा आपको घेरती है तो आप खुद को कमजोर पाते हैं लेकिन खुद को यह भी बताइए कि आप इस निराशा का मुकाबला करेंगे। लोगों को दुख होता है और वे निराश भी हो जाते हैं। उन्हें जीवन में उम्मीद नजर नहीं आती और वे अवसाद में घिर जाते हैं। मगर निराश होना एक बात है और निराशा में ही बैठे रहना दूसरी। वास्तव में आप तभी निराश होंगे जबकि आप निराशा को अपने ऊपर हावी होने देते हैं। अगर आप उसके बारे में बहुत परवाह नहीं करते हैं तो वह एक या दो मिनट से ज्यादा आपको नहीं घेर सकती है। कोई काम नहीं बन पाया कोई बात नहीं, कल फिर से कोशिश करेंगे- इस सोच के साथ जीने वाले निराशा के आने पर भी उसे परे धकेल देते हैं।
जब निराशा महसूस हो तो अपने आप से बात कीजिए और खुद को तैयार कीजिए कि आप आगे बढ़ सकें। खुद को सकारात्मक बनाइए ताकि आप उतार-चढ़ाव का अच्छे से सामना कर सकें। निराशा से पार पाने का उपाय सकारात्मकता ही है।
लेकिन प्रश्न यह भी उठता है कि आखिर हमारा दिमाग निराशा को बहुत गंभीरता से क्यों लेता है? तो जवाब है कि मन हमारी आदतों का गुलाम होता है। आदतों को जाने में समय लगता है। अभ्यास करने से ही आदतों पर विजय मिलती है। अगर आप में कोई बुरी आदत नजर आती है तो अभ्यास के साथ उसे रोकिए। अगर हम आदतों पर रोक लगाएंगे तो मन को भी काबू में कर लेंगे।
प्रयास के साथ इस काम में भी आनंद लेने का प्रयास कीजिए। सोचिए कि आप इसे भी बहुत बेहतर तरीके से करेंगे। मन पुरानी आदतों से बाहर निकल सकता है लेकिन तभी, अगर आप उसे नए रास्ते पर आगे बढ़ाएं।
लोग सिद्धांतों और भाषणों को पसंद करते हैं लेकिन वे व्यवहार को बदलना नहीं चाहते। अपनी आदतों में बदलाव करना नहीं चाहते और यही सबसे बड़ी मुश्किल है। अगर आप इस अव्यवस्था को बदलेंगे तो व्यवस्था खुद-ब-खुद कायम हो जाएगी। आप मन को रोकना सीखिए बस।