Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Dec, 2017 10:25 AM
रिचर्ड हूकर ने 7 वर्षों की मेहनत के बाद अपना उपन्यास एम.ए.एस.एच. लिखने में सफलता पाई। इस उपन्यास को पूरा करने के लिए उन्हें दिन-रात तक का बोध नहीं रहा। कई-कई दिनों तक उन्होंने खाना तक नहीं खाया। यहां तक कि जब उनके मित्र उनके पास आते तो वह उनसे बात...
रिचर्ड हूकर ने 7 वर्षों की मेहनत के बाद अपना उपन्यास एम.ए.एस.एच. लिखने में सफलता पाई। इस उपन्यास को पूरा करने के लिए उन्हें दिन-रात तक का बोध नहीं रहा। कई-कई दिनों तक उन्होंने खाना तक नहीं खाया। यहां तक कि जब उनके मित्र उनके पास आते तो वह उनसे बात तक न करते, बस अपना उपन्यास लिखने में लगे रहते। अथक मेहनत के बाद उपन्यास पूरा हुआ।
वह इसे लेकर एक प्रतिष्ठित प्रकाशक के पास गए। प्रकाशक ने उपन्यास के प्रथम पृष्ठ को देखते ही रिचर्ड पर व्यंग्य करते हुए कहा, ‘‘यह उपन्यास केवल रद्दी की टोकरी में डाले जाने लायक है। इसे मैं तो क्या, कोई छोटा-मोटा प्रकाशक भी प्रकाशित नहीं करेगा।’’
अथक मेहनत के बाद पहली बार ही मिले इतने बड़े नकारात्मक जवाब से रिचर्ड के विचारों में जंग शुरू हो गई। उनके सकारात्मक विचारों पर नकारात्मक विचार हावी होने लगे।
एक दिन जब उनका मन यह कह रहा था कि यह उपन्यास कभी भी प्रकाशित नहीं हो पाएगा तो उन्होंने उस धारणा को दबाकर मंद-मंद स्वर में बोलना आरम्भ कर दिया कि यह उपन्यास न केवल प्रकाशित होगा, अपितु पूरी दुनिया में यह ऐसी धूम मचा देगा कि देखते रह जाएंगे। वह हर प्रकाशक के पास जाने से पहले और बाद तक यही बोलते रहते।
21 प्रकाशकों ने उनके उपन्यास को अस्वीकृत कर दिया लेकिन रिचर्ड का आत्मविश्वास और उत्साह बलवती होता रहा। आखिर एक दिन एक प्रकाशक ने उसे प्रकाशित करने पर अपनी सहमति की मोहर लगा दी। कुछ ही समय बाद यह उपन्यास न केवल बैस्टसैलर बन गया अपितु इस उपन्यास पर एक सफल फिल्म और एक सफल टैलीविजन धारावाहिक भी बना। इस प्रकार रिचर्ड हूकर अपने बुलंद हौसलों के कारण कामयाब होकर पूरी दुनिया के सामने एक प्रेरणा बन गए।