Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Aug, 2018 12:25 PM
भगवान सूर्य परमात्मा नारायण के साक्षात प्रतीक हैं, इसीलिए वह ‘सूर्य नारायण’ कहलाते हैं। वैसे भी भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं और समस्त चराचर प्राणियों के आधार हैं इसलिए त्रिकाल संध्या में सूर्य रूप से भगवान नारायण की ही आराधना की जाती है।
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भगवान सूर्य परमात्मा नारायण के साक्षात प्रतीक हैं, इसीलिए वह ‘सूर्य नारायण’ कहलाते हैं। वैसे भी भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं और समस्त चराचर प्राणियों के आधार हैं इसलिए त्रिकाल संध्या में सूर्य रूप से भगवान नारायण की ही आराधना की जाती है। उनकी उपासना से तेज, बल, आयु एवं नेत्र ज्योति की वृद्धि होती है। भगवान सूर्य का अवतरण ही संसार के कल्याण के लिए है। वह नित्य सभी को चेतनता प्रदान करते हैं। सारे जगत पर कृपा करना ही उनका स्वभाव है। अपने भक्तों और उपासकों पर तो उनकी विशेष प्रीति रहती है।
प्राचीन काल से सूर्य देव को अर्घ्य देकर सुबह की शुरुआत करने की परंपरा रही है। कलयुग के जीवित देवताओं में सूर्य देव की गणना होती है। जिनका हम सुबह से लेकर शाम तक साक्षात दर्शन कर सकते हैं। शास्त्र कहते हैं जो व्यक्ति सूर्य उपासना करता है रोग उससे कोसों दूर रहते हैं और उसका घर-परिवार भी खुशहाल रहता है।
सूर्य नारायण की ऊर्जा के समान ही उनके 21 नामों का प्रभाव है। हर रोज सूर्योदय और सूर्यास्त के वक्त इनका जाप करने से सहस्त्र नाम के पाठ का फल मिलता है। इसके अतिरिक्त पापों का नाश होता है, सुखों में वृद्धि होती है और मान-यश भी प्राप्त होता है।
ये हैं भगवान सूर्य के 21 नाम- विकर्तन, विवस्वान, मार्तंड, भास्कर, रवि, लोकप्रकाशक, श्रीमान, लोक चक्षु, गृहेश्वर, लोक साक्षी, त्रिलोकेश, कर्ता, हर्ता, तमिस्त्रहा, तपन, तापन, शुचि, सप्ताश्ववाहन, गभस्तिहस्त, ब्रह्मा, सर्वदेवनमस्कृत
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