11 जून को करें ये काम, Financial problems का हो जाएगा The End

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Jun, 2017 02:54 PM

this work will be done on 11th june

तंत्र को रहस्यमयी विद्या के रूप में जाना जाता है। वेदों के समय से ये हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। न केवल सनातन धर्म में

तंत्र को रहस्यमयी विद्या के रूप में जाना जाता है। वेदों के समय से ये हिंदू संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। न केवल सनातन धर्म में बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी इस विद्या का प्रचलन और उपयोग किया जाता है। लोक कल्याण के लिए इस विद्या को प्रयोग में लाकर मनचाही सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं। कुछ लोग इसका गलत उपयोग करके अपनी इच्छा तो पूरी कर लेते हैं लेकिन दूसरे को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। किसी के भले के लिए की गई तंत्र सिद्धि फलती-फूलती है, गलत मंशा से किया गया तंत्र साधनाओं का प्रयोग कुछ समय के लिए सकारात्मक परिणाम देता है मगर अंत बहुत दर्दनाक होता है। इस विद्या को गुरू कृपा के बिना समझना असंभव है। तंत्रशास्त्र में जीवन के किसी भी मोड़ पर आ रही कठिनाई से जूझने के लिए टोने-टोटके बताए गए हैं। इस लेख में रविवार के कुछ प्रयोग दिए जा रहे हैं, जो आप घर पर कर सकते हैं। 


तांबे के लोटे में जल, रोली, केसर और लाल मिर्च के दाने मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें। घी में केसर मिलाकर सूर्यदेव को दीपक अर्पित करें। बीजयुक्त सूर्य गायत्री मंत्र का जाप करें: 

 

ह्रीं आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्नौ: सूर्य: प्रचोदयात् ह्रीं।  


ऊंचा ओहदा, मनचाही नौकरी और प्रसिद्धि पाने के लिए भगवान सूर्य के निमित्त व्रत रखें। व्रत नहीं कर सकते तो रविवार के दिन नमक का सेवन न करें। ये भी संभव न हो तो दिन के पहले पहर यानि 12 बजे तक व्रत कर सकते हैं अथवा नमक का त्याग कर सकते हैं। 


किसी समस्या को लेकर मानसिक तनाव से परेशान हैं तो काली गाय और काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। काली चि़ड़ियां को दाना डालें।


कभी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि वह असमय ही किसी कारण से मृत्यु को प्राप्त होने वाला है, अत: उसकी मृत्यु होने की संभावना है तो मुक्ति के निम्र उपाय करें : 

 
ॐ अघोरे भ्यो घोर घोर तरेभ्य: स्वाहा।

 
यह मंत्र किसी भी शुभ नक्षत्र में विधिवत् दस हजार बार जप करने से सिद्ध होता है। प्रयोग करने के समय रविवार को प्रात:काल गुरमा नामक वृक्ष की जड़ को लाकर गर्म जल में मसलते हैं। तत्पश्चात मंत्र को 108 बार पढ़कर इस जल को 10 ग्राम की मात्रा में पिलाने से असमय में मृत्यु नहीं होती।


 

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