Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Feb, 2019 12:17 PM
21 जनवरी से अति पवित्र मास माघ का प्रारंभ हो गया था। ज्योतिषीय पंचांग के अनुसार माघ वर्ष का ग्यारहवां महीना है। माघ मास में कल्पवास अर्थात संगम के तट पर निवास का विधान है। पद्म पुराण में माघ माह का माहात्म्य,
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21 जनवरी से अति पवित्र मास माघ का प्रारंभ हो गया था। ज्योतिषीय पंचांग के अनुसार माघ वर्ष का ग्यारहवां महीना है। माघ मास में कल्पवास अर्थात संगम के तट पर निवास का विधान है। पद्म पुराण में माघ माह का माहात्म्य, 800 श्लोकों में वर्णित है व हेमाद्रि में माघ का विस्तृत वर्णन है।
प्रयाग में माघ मास में तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है, वह फल पृथ्वी में दस हजार अश्वमेध यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता। पुराणों में माघ मास के स्नान को नारायण की सिद्धि का आसान मार्ग बताया है। निर्णय सिंधु के अनुसार माघ में मनुष्य को एक बार तो पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए जिससे वह स्वर्ग लोक का उत्तराधिकारी बन सके।
महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार माघ में प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार तीर्थों का समागम होता है। पद्मपुराण के अनुसार माघ में श्रीहरि का पूजन कर तिल, गुड़ व ऊनी वस्त्र दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है, सभी पापों से मुक्ति मिलती है, मोक्ष का मार्ग खुलता है, कार्यक्षेत्र में सफलता मिलती है व विवादों में जीत हासिल होती है।
माघ मास में प्रात: स्नान (ब्रह्ममुहूर्त में स्नान) सब कुछ देता है। आयुष्य लंबा करता है, अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, आरोग्य, रूप, बल, सौभाग्य व सदाचरण देता है। जो बच्चे सदाचरण के मार्ग से हट गए हैं उनको भी पुचकार के ईनाम देकर भी प्रात: स्नान कराओ तो उन्हें समझाने से मारने-पीटने से या और कुछ करने से वे उतना नहीं सुधर सकते हैं, घर से निकाल देने से भी इतना नहीं सुधरेंगे जितना माघ मास में सुबह का स्नान करने से वे सुधरेंगे।
माघ स्नान से सदाचार, संतान वृद्धि, सत्संग, सत्य आचरण, उदारभाव आदि का प्राकट्य होता है। व्यक्ति की समझ उत्तम गुणों से संपन्न हो जाती है। उसकी दरिद्रता और पाप दूर हो जाते हैं। दुर्भाग्य का कीचड़ सूख जाता है। माघ मास में सत्संग प्रात: स्नान जिसने किया, उसके लिए नरक का द्वार सदा के लिए खत्म हो जाता है।
मरने के बाद वह नरक में नहीं जाएगा। माघ मास के प्रात: स्नान से वृत्तियां निर्मल होती हैं, विचार ऊंचे होते हैं। समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।
माघ मास का पुण्यस्नान यत्नपूर्वक करना चाहिए। माघ मास के प्रात: स्नान से विद्या निर्मल होती है। निर्मल विद्या होगी तो पापाचरण में रुचि नहीं होगी। माघ के प्रात: स्नान से निर्मल विद्या व र्कीत मिलती है। ‘अक्षय धन’ की प्राप्ति होती है। रुपए-पैसे तो छोड़ कर मरना पड़ता है। दूसरा होता है ‘अक्षर धन’ जो धन कभी नष्ट न हो उसकी भी प्राप्ति होती है। समस्त पापों से मुक्ति और इंद्रलोक अर्थात स्वर्गलोक की प्राप्ति सहज में हो जाती है। ‘पद्म पुराण’ में भगवान राम के गुरुदेव वशिष्ठ जी कहते हैं कि वैशाख में जलदान, अन्नदान उत्तम माना जाता है और कार्तिक में तपस्या, पूजा लेकिन माघ में जप, होम और दान उत्तम माना गया है।
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