Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Aug, 2018 02:56 PM
संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। कबीर वैरागी साधु थे उसी तरह जिस तरह के सूफी होते हैं।
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संत कबीर 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। कबीर वैरागी साधु थे उसी तरह जिस तरह के सूफी होते हैं। लेकिन ये सवाल आज भी उठता है कि वे हिन्दु थे या मुसलमान। उनका पहनावा कभी सूफियों जैसा होता था तो कभी संतों जैसा। कबीर ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए कार्य किया। वे दलित व गरीबों के मसीहा कबीर जन नायक माने जाते थे। उन्होने बहुत से ग्रथों की रचना करी।
संत कबीर हमेशा सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनको सुनने आया करते थे। एक बार वे सत्संग कर रहे थे, सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी वहीं बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मैं आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता हुं। मैं एक गृहस्थी हूं, घर में किसी के साथ मेरी नहीं बनती, सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं ये जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और इन सब को दूर कैसे कर सकूं।’
ये सुन कर कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी को लालटेन जलाकर लाने को कहा।
उनकी पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। तब दोपहर का समय था, वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई।
थोड़ी देर बाद कबीर ने अपनी पत्नी को कुछ मीठा दे जाने को कहा। इस बार उनकी पत्नी मीठे की बजाय नमकीन देकर चली गई।
उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठे के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बड़ी न्रमता से बोला, ‘कबीर जी मैं चलता हूं।’
कबीर ने पूछा, ‘क्या आपको आपकी समस्या का समाधान मिला या फिर कुछ संशय बाकी है?’
वह व्यक्ति बोला, ‘मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया।’
कबीर ने कहा, ‘जैसे मेरे लालटेन मंगवाने पर मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या पागल हो गए हो, जो इतनी दोपहर में लालटेन की जरूरत पड़ गई। लेकिन नहीं, उसने एेसा नहीं कहा, जरूर सोचा होगा कि किसी काम के लिए लालटेन मंगवाई होगी, इसलिए वो चुपचाप चली गई।’
मैनें मीठा मंगवाया तो नमकीन देकर चली गई। घर में मीठी वस्तु नहीं होगी, इसलिए वह नमकीन देकर चली गई। यह सोचकर मैं चुप रहा। तो अब बताओ इसमें तकरार क्या?
इससे न तो बहस हुई, न ही कोई विषम परिस्थिति पैदा हुई। अब वह आदमी बहुत हैरान हुआ। उसे समझ आ गया था कि कबीर ने ये सब उसके लिया किया था।
कबीर ने कहा, ‘गृहस्थी जीवन की गाड़ी को चलाने के लिए आपसी तालमेल और विश्वास का होना जरुरी है। दोनों में से चाहे किसी की भी गलती हो, तो उसे नज़र अंदाज कर देना चाहिए। यही गृहस्थ जीवन का मूल मंत्र है।’
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