आज के दिन मिला था हनुमान जी को अजर अमर होने का आशीर्वाद, पढ़ें कथा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Oct, 2017 08:41 AM

today hanuman jayanti

वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान एक वानर वीर थे जो श्रीराम को ऋष्यमूक पर्वत के पास मिले थे। यह राम के अनन्य मित्र, सहायक व भक्त सिद्ध हुए। रामदूत बनकर सीता की खोज करने हेतु लंका गए। राम-रावण युद्ध में

वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान एक वानर वीर थे जो श्रीराम को ऋष्यमूक पर्वत के पास मिले थे। यह राम के अनन्य मित्र, सहायक व भक्त सिद्ध हुए। रामदूत बनकर सीता की खोज करने हेतु लंका गए। राम-रावण युद्ध में भी इनका पराक्रम प्रसिद्ध है। सुन्दर काण्ड के अनुसार लंका में समुद्र तट पर स्थित एक 'अरिष्ट' नामक पर्वत है, जिस पर चढ़कर हनुमान ने लंका से लौटते समय समुद्र को कूद कर पार किया था। हनुमान राम के पार्षद और पुन: पूज्य देव रूप में मान्य हो गए। धीरे-धीरे हनुमंत अथवा मारूति पूजा का एक सम्प्रदाय ही बन गया। 'हनुमत्कल्प' में इनके ध्यान और पूजा का विधान पाया जाता है।


पौराणिक संदर्भ: वानरराज केसरी और अप्सरा पुंजिकस्थली अर्थात अंजनी को शिव के वरदान से पवन देव द्वारा हनुमान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। जन्म लेने के बाद हनुमान ने आकाश में चमकते हुए सूर्य को फल समझा व उड़कर लेने के लिए आकाश-मार्ग में गए। मार्ग में उनकी टक्कर राहु से हो गई। राहु घबराया हुआ इंद्र के पास पहुंचा और शिकायत की। इंद्र क्रुद्ध होकर ऐरावत पर बैठकर चल पड़े। हनुमान ने उसे भी फल समझा तथा उसकी ओर झपटे। उसने इंद्र को आवाज़ दी। तभी हनुमान ने ऐरावत को देखा। उसे और भी बड़ा फल जानकर वे पकड़ने के लिए बढ़े। इंद्र ने क्रुद्ध होकर अपने वज्र से प्रहार किया, जिससे हनुमान की बाईं ठोड़ी टूट गई और वे नीचे गिरे। पवन देव उन्हें उठाकर एक गुफा में चले गए। पवन ने संसार की सारी वायु रोक ली। इस पर ब्रह्मदेव ने हनुमान जी को ठीक कर दिया। ब्रह्मदेव सहित सभी देवों ने हनुमान को अनेक वरदान देकर विभूषित किया। इन्द्र ने स्वर्ण कमल की माला, सूर्य ने अपना सौंवा भाग, यम ने यमदंड से अभय, वरुण ने जल से सुरक्षा, कुबेर ने अस्त्र-शस्त्र। ब्रह्मदेव ने ब्रह्मास्त्र से सुरक्षा व इच्छाधारी रूपधारी का वर और शिव ने महा अभय का वर दिया।


कार्तिक कृष्ण चौदस की मान्यता: कालांतर में हनुमान ने देवी सीता के मांग में सिंदूर देखकर उनसे सिंदूर का महत्व पूछा था। देवी सीता ने उन्हें सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए सिंदूर के महत्व को समझाया। उसके बाद से ही हनुमान ने सोचा कि सिर्फ मांग में सिंदूर लगाने से अगर भक्ति प्रदर्शित होती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है तो क्यों न मैं अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लूं। हनुमान के मन की बात देवी सीता को भी पता चली। प्रचलित कथा के अनुसार लंका विजय के पश्चात जब श्रीराम लंका विजय कर अयोध्या आए तो उन्होंने वानर वीरों को यथोचित पुरस्कार प्रदान किए। 


हनुमान जी को कार्तिक कृष्ण चौदस के दिन देवी सीता ने रत्नमणि की माला से अलंकृत कर पुरस्कृत किया। माला में राम नाम न होने से जब हनुमान जी संतुष्ट न हुए तो देवी सीता ने कार्तिक कृष्ण चौदस को देवी सीता ने हनुमान जी को भेंट स्वरूप सौभाग्य सूचक सिंदूर प्रदान कर उन्हें अमृतव का वर दिया। देवी सीता ने हनुमान से कहा कि सिंदूर को लगाओ व अजर अमर हो जाओ। तभी से हनुमान जी अपने पूरे बदन पर सिंदूर धारण करने लगे इसलिए इस तिथि विशेष का महत्व और बढ़ गया।


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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