Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Oct, 2022 10:55 AM
रामायण के मुख्य पात्र त्रेतायुग के नायक भगवान श्री राम का वनगमन प्रकृति से विमुग्ध होकर हुआ था। उन्होंने वनगमन में पेड़-पौधों को उपभोक्तावाद के दृष्टिकोण की बजाय श्रद्धा और आत्मीयता की भावना तथा पेड़-पौधों को
Ramayan: रामायण के मुख्य पात्र त्रेतायुग के नायक भगवान श्री राम का वनगमन प्रकृति से विमुग्ध होकर हुआ था। उन्होंने वनगमन में पेड़-पौधों को उपभोक्तावाद के दृष्टिकोण की बजाय श्रद्धा और आत्मीयता की भावना तथा पेड़-पौधों को देव तुल्य दृष्टि से देखा। उन्होंने तुलसी को हरिप्रिया, देवदार को देवतरू, पलाश को ब्रह्मधुम, मौलश्री को महापशुपत, सहजन को कृष्णबीज, साल को देव धूप, कमल को विष्णुपद, पीपल को देव सदन कह कर पुकारा।
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भगवान श्री राम तो एक राजा के पुत्र युवराज थे। मर्यादा पुरुषोत्तम तो वह वनगमन से ही कहलाए थे। सीता माता के अपहरण के बाद भगवान राम को लगता था कि सीता जी एक प्रकृति हैं और उनके बिना वह अधूरे हैं। ऐसे ही प्रकृति के प्रत्येक प्राणी, पेड़- पौधे को सीता जी अपनी पीड़ा बताती थीं।
Shri krishna: इसी प्रकार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के जीवन में देखें तो पाएंगे कि जीवन और वृक्ष उनके संग-संग रहे हैं। ब्रज में एक-दो नहीं सोलह-सोलह वन हैं जिनमें सर्वाधिक कृष्णमय वृंदावन वृंदा अर्थात तुलसी का वन है। ‘गीता’ में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को अश्वत्थ वृक्ष यानी पीपल कहा है। भगवान कृष्ण ने यहां तक कहा है कि मेरे स्वरूप को व्यक्ति नहीं, विग्रह नहीं वस्तुत: एक वृक्ष की तरह देखना चाहिए।
lord buddha: भगवान बुद्ध और भगवान महावीर जी ने भी महलों से निकल कर प्रकृति का ऋण उतारने के लिए वनगमन का चयन किया था।
Guru nanak dev ji: श्री गुरु नानक देव जी ने भी पृथ्वी पर प्रकृति की महत्ता यह कह कर उजागर की थी कि ‘‘पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत।’’
Trees and religion: वहीं पंजाब के महान कवि शिव कुमार बटालवी ने अपनी कविता ‘रुख’ में यह लिखते हुए वृक्षों के साथ अपना गहरा संबंध बताया था, ‘‘कुज रुख मैनूं पुत्त लगदे ने कुज रुख लगदे ने मांवां।’’
Why are trees and plants important to Hinduism: हमारी भारत की संस्कृति में प्रकृति की पूजा के पर्व भी हैं। जैसे हरियाली तीज और हरियाली अमावस्या जिन्हें लोग बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं। अत: हमें पर्यावरण के संरक्षण के लिए वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए और अपने बच्चों को भी प्रकृति की अनमोल निधियों से परिचय कराना चाहिए। हमारे लिए प्रकृति का ऋण चुकाना बहुत जरूरी है। अत: लोगों को प्रकृति को जीवित रखने के लिए ज्यादा से ज्यादा वृक्ष लगाने चाहिएं नहीं तो प्रकृति में वृक्षों की कमी के कारण वातावरण में प्रदूषण बढ़ जाएगा और जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
Shiv Mahapuran: यहां यह बताना भी जरूरी है कि वृक्षारोपण का फल शिव महापुराण के पांचवें खंड ‘उमा संहिता’ में बताया गया है। उसके अनुसार जो मनुष्य वृक्षों को लगाता है वह भूतकाल और भविष्य के पितृवंशों को तारता है। ये लगाए हए वृक्ष उनके दूसरे जन्म में पुत्र के रूप में होते हैं।