तृतीया दुर्गा चन्द्रघण्टा: शादी और काम सुख से संबंधित हर समस्या होगी हल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Sep, 2017 11:25 AM

tritia durga chandra ghanta

नवरात्र के तीसरे दिन नवदुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चन्द्रघण्टा का पूजन किया जाता है। ये देवी शुक्र ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। देवी चन्द्रघण्टा उस नवयोवन जीव की अवस्था को संबोधित करती हैं

नवरात्र के तीसरे दिन नवदुर्गा के तृतीय स्वरूप मां चन्द्रघण्टा का पूजन किया जाता है। ये देवी शुक्र ग्रह पर अपना आधिपत्य रखती हैं। देवी चन्द्रघण्टा उस नवयोवन जीव की अवस्था को संबोधित करती हैं जिसमें प्रेम का भाव जागृत है तथा जो व्यसक कि श्रेणी में आ गया है। देवी चन्द्रघण्टा का स्वरूप चमकते हुए तारे जैसा है। शास्त्रों में देवी चन्द्रघण्टा के रूप का वर्णन युद्ध में डटे योद्धा की भांति बताया गया है और इन्हें वीर रस की देवी कहकर संबोधित किया गया है। मां का हर स्वरूप परम शक्तिशाली व वैभवशाली है। 


इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। अनेक प्रकार के रत्नों से सुशोभित देवी सिंह पर सवार है तथा देवी ने अपने दस हाथों में खड्ग, अक्षमाला, धनुष, बाण, कमल, त्रिशूल, तलवार, कमण्डलु, गदा, शंख, बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं। इनके गले में पुष्पमाला है। देवी चन्द्रघण्टा की साधना का सम्बंध शुक्र ग्रह से है। कालपुरूष सिद्धांत के अनुसार कुण्डली में शुक्र का संबंध दूसरे और सातवें घर से होता है अतः देवी चन्द्रघण्टा कि साधना का संबंध व्यक्ति के सुख, ऐश्वर्य, संपन्नता, सुविधाएं, प्रेम, कामनाएं, संभोग व सुखी ग्रहस्थ जीवन से है। 


वास्तुपुरुष सिद्धांत के अनुसार देवी चन्द्रघण्टा की साधना का संबंध अग्नि तत्व से है, इनकी दिशा दक्षिण-पूर्व है। निवास में बने वो स्थान जहां पर आग से संबंधित कार्य होता है। इनकी पूजा का श्रेष्ठ समय हैं गौधूलि वेला। इनके पूजन में गुलाबी रंग के फूलों का इस्तेमाल करना चाहिए। दूध-चावल से बनी खीर का भोग लगाना चाहिए तथा श्रृंगार में इन्हें सुगंधित द्रव्य और इत्र अर्पित करना चाहिए। 


इनकी साधना से उपासक को सुख-सुविधा, धन-ऐश्वर्य, प्रेम, काम, सांसारिक सुख, सुखी ग्रहस्थ जीवन और सम्पन्नता प्राप्त होती है। इनकी साधना से अविवाहितों का शीघ्र विवाह होता है। प्रेम में सफलता मिलती है । काम सुख में बढ़ोत्तरी होती है और वैवाहिक जीवन का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।


इस मंत्र से करें देवी की उपासना 
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। 
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥


आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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