Edited By Jyoti,Updated: 27 Aug, 2018 04:10 PM
भारत एक एेसा देश है जहां तीर्थ यात्रा का बहुत महत्व है। चाहे कोई भी धर्म हो हर धर्म के धार्मिक स्थल देश के कोने-कोने में पाए जाते हैं। प्राचीन समय में किसी भी यात्रा में जाना बहुत कठिन होता था। पैदल या तो बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी।
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भारत एक एेसा देश है जहां तीर्थ यात्रा का बहुत महत्व है। चाहे कोई भी धर्म हो हर धर्म के धार्मिक स्थल देश के कोने-कोने में पाए जाते हैं। प्राचीन समय में किसी भी यात्रा में जाना बहुत कठिन होता था। पैदल या तो बैल गाड़ी में यात्रा की जाती थी। जिस करते समय थोड़े-थोड़े अंतर पे रूकना होता था। अलग-अलग प्रकार के लोगों से मिलना होता था, समाज का दर्शन होता था। अलग बोली और अलग रीति-रिवाज़ से परिचय होता था। कंई कठिनाईओ से गुज़रना पड़ता और कंई तरह के अनुभव भी प्राप्त होते थे। तो आईए आज हम आपको तीर्थ यात्रा से संबंधित एक एेसी ही कहानी बताते हैं जो रोचक के साथ-साछ सीख भी प्रदान करेगी।
एक बार तीर्थ यात्रा पे जाने वाले लोगों का संघ संत तुकाराम जी के पास जाकर उनके साथ चलने की प्रार्थना की। तुकाराम जी ने अपनी असमर्थता बताई। उन्होंने तीर्थ यात्रियों को एक कड़वा कद्दू देते हुए कहा: “मैं तो आप लोगों के साथ आ नहीं सकता लेकिन आप इस कद्दू को साथ ले जाईए और जहां-जहां भी स्नान करें, इसे भी पवित्र जल में स्नान करा लीजिएगा।”
लोगों ने वह कद्दू ले लिया और जहां-जहां गए, स्नान किया वहां-वहां उसे भी स्नान करवाया; मंदिर में जाकर दर्शन किया तो उसे भी दर्शन करवाया। ऐसे यात्रा पूरी होते सब वापस आए और उन लोगों ने वह कद्दू संत जी को दिया। तुकाराम जी ने सभी यात्रियों को प्रीतिभोज पर आमंत्रित किया। तीर्थ यात्रियों को विभिन्न पकवान परोसे गए। तीर्थ में घूमकर आए हुए कद्दू की सब्जी विशेष रूपसे बनवाई गयी थी। सभी यात्रियों ने खाना शुरू किया और सबने कहा कि “यह सब्जी कड़वी है।”
तुकाराम जी ने आश्चर्य बताते कहा कि “यह तो उसी कद्दू से बनी है, जो तीर्थ स्नान कर आया है। बेशक यह तीर्थाटन के पूर्व कड़वा था, मगर तीर्थ दर्शन और स्नान के बाद भी इसी में कड़वाहट है!”
यह सुन सभी यात्रियों को बोध हो गया कि ‘हमने तीर्थाटन किया है लेकिन अपने मन को और स्वभाव को सुधारा नहीं तो तीर्थ यात्रा का अधिक मूल्य नहीं है। हम भी एक कड़वे कद्दू जैसे कड़वे रहकर वापस आएं है।
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