तुलसीदास जी ने बताया है क्रोध का दुष्प्रभाव, क्या आप जानते हैं?

Edited By Jyoti,Updated: 14 Apr, 2020 10:50 AM

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क्रोधी कैसी अग्नि है जो इंसान को जला देती है। शास्त्रों में भी इस बात का वर्णन देखने पढ़ने को मिलता है। मगर बावजूद इसके हर प्राणी के अंदर क्रोध होता है।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
क्रोधी कैसी अग्नि है जो इंसान को जला देती है। शास्त्रों में भी इस बात का वर्णन देखने पढ़ने को मिलता है। मगर बावजूद इसके हर प्राणी के अंदर क्रोध होता है। इसका होना कोई गलत बात नहीं है परंतु जब क्रोध अपनी सीमा से बढ़कर होता है। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि क्रोध नहीं करना चाहिए। आजकल की युवा पीढ़ी इन सब बातों में विश्वास नहीं रखती। यही कारण है कि वह अपने क्रोध पर कंट्रोल नहीं कर पाते और दूसरों के साथ-साथ अपना भी नुकसान करते हैं। जो लोग अपने जीवन में क्रोध पर काबू नहीं कर पाते उन्हें अपनी जिंदगी में कुछ हासिल नहीं होता। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि अगर कुछ हासिल करना है तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने भीतर से क्रोध के भाव को निकाल बाहर फेंकना होगा। आज हम आपको इसी संदर्भ में से जुड़ी ऐसी जानकारी देने वाले हैं जिसमें तुलसीदास जी ने बताया है कि क्रोध न त्यागने वाले का क्या हश्र होता है।
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यहां जाने राम चरित्र मानस में क्रोध से संबंधित श्लोक-

तुलिसदास जी ने सबसे बड़े हिन्दू ग्रंथ रामचरितमानस में भी क्रोध को लेकर लिखा है 

क्रुद्धः पापं न कुर्यात् कः क्रृद्धो हन्यात् गुरूनपि ।
क्रुद्धः परुषया वाचा नरः साधूनधिक्षिपेत् ॥
कः क्रुद्धः पापं न कुर्यात्, क्रृद्धः गुरून् अपि हन्यात्, क्रुद्धः नरः परुषया वाचा साधून् अधिक्षिपेत् ।

हिंदू धर्म के सबसे बड़े ग्रंथ श्री राम चरित्र मानस में तुलसीदास जी ने क्रोध की परिभाषा करते हुए कहा है कि क्रोध विनाश का कारण बनता है। इसको करने वाला इंसान अपने जीवन में केवल पाप कर्म करता है, वह कभी किसी भी पुण्य काम का भागीदार नहीं बन पाता। वह दूसरों के लिए और अपशब्दों का  प्रयोग करता है जिससे वे समाज में अपना मान सम्मान तो खो ही देता है बल्कि अपने जीवन में अच्छे कर्मों को कम कर बुरे कर्मों को जोड़ लेता है।

कई बार क्रोधी व्यक्ति अपने सामने वाले महापुरुषों का भी निरादर कर देता है। जिससे उसके द्वारा किए गए सभी पुण्य काम व्यर्थ हो जाते हैं।
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तुलसीदास जी कहते हैं क्रोध से न सामने वाले का बल्कि अपना भी बुरा करते हैं क्योंकि क्रोध आने से स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। इसीलिए कहा जाता है क्रोध कम करना चाहिए क्योंकि यह जीवन को तो खराब करता ही है। साथ ही साथ स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचाता है। इसके अलावा कुछ लोगों का क्रोध करने से ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है जिसके कारण उन्हें कई बार अनेक प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

इसके अलावा  क्रोध करने से व्यक्ति का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है रिश्तो में कड़वाहट भी पैदा होती है। रिश्तों में प्यार की जगह कड़वाहट व नफ़रत पैदा होने लगती है क्योंकि इससे व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आ जाता है जिस कारण व्यक्ति हर किसी के प्रति क्रोध भरी भावना रखता है इसलिए श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कहा है कि क्रोध नहीं करना चाहिए। जिसकी सबसे बड़ी उदाहरण मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम हैं जिन्होंने अपने जीवन काल में क्रोध को न समान जगह दी और हमेशा अपने आप को धैर्यवान बनाकर रखा जिसके परिणाम स्वरूप उन्होंने हर किसी पर विजय पाई।

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