जब अपने भक्त के लिए खाई भोलेनाथ ने लाठी से मार

Edited By Jyoti,Updated: 14 Jun, 2019 02:10 PM

ugarnath mahadev in bihar

इतना तो सभी जानते हैं कि भोलेनाथ समस्त देवों में से सबसे भोले देव माने जाते हैं। इसी भोलेपन के चलते शिव शंकर अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इतना ही नहीं अगर प्राचीन काल की ओर एक बार दृष्टि डाली जाए तो हमारे हिंदू शास्त्रों व ग्रंथों...

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इतना तो सभी जानते हैं कि भोलेनाथ समस्त देवों में से सबसे भोले देव माने जाते हैं। इसी भोलेपन के चलते शिव शंकर अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इतना ही नहीं अगर प्राचीन काल की ओर एक बार दृष्टि डाली जाए तो हमारे हिंदू शास्त्रों व ग्रंथों में भोलेनाथ के भोलेपन की कई कथाएं आदि पढ़ने-सुनने को मिलती है। आज हम आपको शिव जी की ऐसी ही कथा और स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं जहां भोलेनाथ अपने एक भक्त के लिए नौकर बन कर रहे थे। जी हां, हो सकता है ये सुनने के बाद आपको विश्वास न हो रहा हो। यहां तक कि ये सुनने के बाद यकीनन आपका हमें गालियां देने के मन कर रह होगा आख़िर हम ऐसी बात कैसे रहे हैं। लेकिन आप माने या न मानें ये सच है। महादेव अपने एक भक्त के लिए उसके पास नौकर बन रहे थे। तो अगर आप इस पूरे वाक्य के बारे में जानना चाहते हैं तो हमारे द्वारा दी गई जानकारी ज़रूर पढ़ें। 
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यूं तो दुनिया के हर कोने में जगतव्यापी शिव शंकर के कईं मंदिर स्थापित हैं, जिनसे कईं रोचक कथाएं जुड़ी हुई हैं। मगर जिस मंदिर के बारे में हम बताने जा रहे हैं वो सबसे अद्भुत माना जाता है। यह मंदिर बिहार के मधुबनी ज़िले के भवानीपुर गांव में स्थित है, जो उगना महादेव व उग्रनाथ मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान शिव ने स्वयं महाकवि विद्यापति की नौकरी की थी। 

यहां जाने इस संदर्भ से संबंधित पौराणिक कथा-
महाकवि विद्यापति जिनका जन्म सन् 1352 में हुआ, भारतीय साहित्य की भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक और मैथिली के सर्वोपरि कवि के रूप में जाने जाते हैं। कहा जाता है कि यह भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे। इस बात का प्रमाण उनके शिवभक्ति पर रचित कई गीत रचना थे। पौराणिक किंवदंतियों के मुताबिक भोलेनाथ विद्यापति की भक्ति व रचनाओं से बेहद प्रसन्न थे। 

एक दिन भगवान शंकर की उनके घर नौकर बनने की इच्छा हुई। फिर क्या महादेव एक साधारण से व्यक्ति का वेष धारण करके पहुंचे गए कवि विद्यापति के घर और उनके यहां नौकरी करने की इच्छा ज़हिर की। कवि विद्यापति की आर्थिक स्थति ठीक न होने के कारण उन्होंने उगना अर्थात भगवान शिव को नौकरी पर रखने से मना कर दिया लेकिन शिव ने उन्हें सिर्फ दो वक्त के भोजन पर रखने के लिए तैयार कर लिया। 
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एक दिन विद्यापति राजा के दरबार में जा रहे थे, उगना भी उनके साथ चल दिया। तेज़ गर्मी और धूप के कारण विद्यापति का गला सूखने लगा। आस-पास जल का कोई स्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से जल का प्रबंध करने को कहा। भगवान शिव ने थोड़ा दूर जा कर अपनी जटा खोली व एक लौटा जल ले आए। विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गंगाजल का स्वाद आया, उन्होंने सोचा कि इस वन में यह जल कहां से आया। विद्यापति को संदेह हो गया कि उगना स्वयं भगवान शिव हैं। जब विद्यापति उगना को शिव सम्बोधित कर उनके चरणों में पड़ गए, तो शिव को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा।

शिव ने कवि विद्यापति के साथ रहने की इच्छा जताई लेकिन उन्होंने कहा के मैं तुम्हारे साथ उगना बनकर ही रहुंगा, मेरा वास्तविक परिचय किसी को पता नहीं लगना चाहिए। विद्यापति ने भगवान शिव की शर्त मान ली लेकिन एक दिन उगना द्वारा किसी गलती पर कवि की पत्नी उसे चूल्हे की जलती लकड़ी से पीटने लगी। उसी समय विद्यापति वहां आए और उनके मुंह से निकल गया के ये साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें तुम लकड़ी से मार रही हो। 

जैसे विद्यापति के मुख से ये बात निकली शिव अंर्तध्यान हो गए। अपनी भूल का पछतावा करता विद्यापति पागलों की तरह वनों में शिव को पुकारने लगे। अपने प्रिय भक्त की एेसी दशा देख कर भगवान उनके समक्ष प्रकट हो गए और उन्हें समझाया कि मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। परंतु उगना के रूप में जो तुम्हारे साथ रहा उसके प्रतीक चिन्ह के रूप में अब मैं शिवलिंग के रूप में तुम्हारे पास विराजमान रहूंगा। उसके बाद उस स्थान पर शिवलिंग प्रकट हो गया। बता दें आज की तारीख़ में उग्रनाथ महादेव का नामक प्रसिद्ध मंदिर मधुबनी ज़िला में भवानीपुर गांव में स्थित है। इस प्रसिद्ध मंदिर के गर्भगृह में जाने के लिए 6 सीढि़यां उतरनी पड़ती हैं। ठीक वैसे, जैसे उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिवलिंग तक पहुंचने के लिए 6सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। यहां स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है, जो आधार तल से पांच फुट नीचे है। माघ कृष्ण पक्ष में आने वाला नर्क निवारण चतुर्दशी उगना मंदिर का प्रमुख त्योहार है। वर्तमान उग्रनाथ महादेव मंदिर 1932 में निर्मित बताया जाता है। कहा जाता है कि 1934 के भूकंप में मंदिर का बाल भी बांका नहीं हुआ था। मंदिर के सामने एक बहुत ही सुंदर सरोवर है और इसके पास ही एक कुआं भी है। इसके बारे में मान्यता है विद्यापति के घर नौकरी के समय शिव जी यहीं से पानी निकाला करते था। यही कारण है दूर-दूर से श्रद्धालु इस कुंए का पानी पीने के लिए आते हैं।
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