धार्मिक मान्यता: इन पेड़ों की शाखाओं के आगे लोहे की चादरें भी तोड़ देती हैं अपना दम

Edited By Jyoti,Updated: 11 Mar, 2020 05:50 PM

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जब भी उज्जैन की बात होती है सबसे पहले मन में बाबा महकाल का स्मरण होता है। इसका कारण है यहां विराजमान महाकाल। कतहा जाता है उज्जैन नगरी को शिव की नगरी के नाम से जाना जाता है।

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जब भी उज्जैन की बात होती है सबसे पहले मन में बाबा महकाल का स्मरण होता है। इसका कारण है यहां विराजमान महाकाल। कतहा जाता है उज्जैन नगरी को शिव की नगरी के नाम से जाना जाता है। न केवल यहां बल्कि देश के कई और शहरों में उज्जैन को बाबा महाकाल के नाम से ही जाना जाता है। मगर क्या आपको पता है महाकाल की नगरी से प्रसिद्ध इस नगरी में एक ऐसा स्थान भी है जो शिव जी की वजह से नहीं बल्कि पेड़ों के कारण प्रसिद्ध है। जी हां, हो सकता है आज भी इस स्थान के बारे में ज्यादा लोगों कोे न पता हो। तो अगर आपको भी नहीं पता तो चलिए हम आपको बताते हैं कि इस स्थल के बारे में जहां के पेड़ों में एक अनोखी शक्ति है।

दरअसल हम बात कर रहे हैं उज्जैन के सिध्दवट प्रयाग में स्थित अक्षयवट की, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसकी खासियत वृन्दावन के वंशीवट तथा नासिक के पंचवट के समान ही है, इसे भी उसी की तरह पवित्र माना जाता है और अपनी इसी पवित्रता के लिए ये प्रसिद्ध हासिल किए हुए हैं। मान्यताओं के अनुसार इसे शक्तिभेद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। स्कन्द पुराण में इस स्थान को प्रेत-शिला-तीर्थ कहा गया है। जिसको देवी पार्वती द्वारा लगाया गया था। कहा जाता है इस वट की शिव के रूप में पूजा होती की जाती है। धार्मिक कथाओं में किए वर्णन के अनुसार पार्वती के पुत्र कार्तिक स्वामी को यहीं पर सेनापति नियुक्त किया गया था तथा यहीं उन्होंने तारकासुर का वध किया था। तो वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार देवी पार्वती ने यहां तपस्या की थी। सिध्दवट के तट पर क्षिप्रा में प्राचीनकाल से ही अनेक कछुए पाए जाते हैं। पुण्यसलिला क्षिप्रा के सिध्दवट घाट पर अन्त्येष्टि-संस्कार सम्पन्न किया जाता है। 

एक प्रचलित किंवदंती के अनुसार एक बार यहां एक बड़ा बरगद का पेड़ काट दिया गया और पूरे इलाके को लोहे की चादरों से ढक दिया गया था। मगर हैरत की बात यह थी कि बरगद की शाखाएं लोहे की चादर में छेद करके बाहर निकल आई। तब से स्थानीय लोग इस जगह को पावन मानने लगे। बताया जाता है नाथ संप्रदाय के लोग इस जगह पर पूजा-आदि भी करते हैं।

इसके अलावा यहां तीन तरह की सिद्धि होती है संतति, संपत्ति और सद्‍गति। तीनों की प्राप्ति के लिए यहां अलग से पूजन किया जाता है। बता दें सद्‍गति अर्थात पितरों के लिए अनुष्ठान, संपत्ति अर्थात लक्ष्मी कार्य के लिए वृक्ष पर रक्षा सूत्र बांधना एवं संतति अर्थात पुत्र की प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया स्वस्तिक बनाना। चूंकि ये वृक्ष तीनों प्रकार की सिद्धि देता है इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है। 

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