Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Apr, 2018 02:07 PM
बैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी वरूथिनी नाम से प्रसिद्ध है तथा इस बार यह 12 अप्रैल को है। यह एकादशी पुण्यदायिनी एवं सौभागयदायिनी है। इस एकादशी का व्रत करने से प्रभु जहां बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं वहीं व्रत के प्रभाव से जीव के सभी पापों का नाश...
बैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी वरूथिनी नाम से प्रसिद्ध है तथा इस बार यह 12 अप्रैल को है। यह एकादशी पुण्यदायिनी एवं सौभागयदायिनी है। इस एकादशी का व्रत करने से प्रभु जहां बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं वहीं व्रत के प्रभाव से जीव के सभी पापों का नाश हो जाता है, सुख सौभागय में वृद्धि होती है तथा अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। पदमपुराण के अनुसार राजा मान्धाता ने इस एकादशी का व्रत करके मोक्ष को प्राप्त किया था। सकन्द पुराण के अनुसार एकादशी तिथि में रोटी, चावल, दाल आदि अन्न का सेवन करने वाले को इतना दोष लगता है कि हजारों पुण्य करने पर भी जीव भगवद् धाम वैकुण्ठ को प्राप्त नहीं कर सकता।
क्या है पुण्य फल?
इस एक एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को 10 हजार वर्ष तक तप करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है तथा जीव को कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय किए जाने वाले स्वर्ण दान के समान शुभ फल प्राप्त होता है।
क्या है दान की महिमा?
वैसे तो सभी शास्त्रों में किसी भी वस्तु का कभी भी दान करने से पुण्य फल मिलता है परंतु अलग-अलग समय पर किए जाने वाले दान की महिमा भी अनन्त है। शास्त्रानुसार हाथी का दान घोड़े के दान से, भूमिदान तिलों के दान से, तिलों का दान स्वर्ण दान से, स्वर्ण का दान अन्न दान से श्रेष्ठ होता है। क्योंकि अन्न दान से देवता, पितर और मनुष्य प्रसन्न होते हैं इसलिए अन्न दान सर्वश्रेष्ठ है। अन्न दान को कन्यादान के बराबर माना जाता है तथा इस दिन अन्न एवं कन्यादान के योग के बराबर मिलने वाले फल की प्राप्ति जीव को सहज ही हो जाती है।
शास्त्रानुसार कन्या का धन लेने वालों को प्रलय काल तक नरक में रहना पड़ता है तथा उन्हें विलाब का जन्म भोगना पड़ता है। जो लोग प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, किसी कन्या के विवाह में सहयोग देते हैं, उनके पुण्यों का अनुमान लगाना भी असम्भव है क्योंकि ऐसे लोगों के पुण्यकर्म लिखने में चित्रगुप्त भी असमर्थ है।
इस व्रत में क्या न करें?
एकादशी से एक दिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि यानि 11 अप्रैल को ही कांसे के बर्तन में भोजन न करें, मांस, मसूर की दाल, चने, शाक, शहद आदि का सेवन न करें किसी दूसरे के अन्न, दूसरी बार भोजन न करके अपने मन को पवित्र बनाएं, व्रत में जूआ न खेले, रात्रि को शयन न करे, किसी की निंदा चुगली न करें, किसी पर क्रोध न करें तथा झूठ न बोले। पदमपुराण के अनुसार कन्या के धन से बचना चाहिए, कन्या के धन को कभी अपने कामों पर खर्च नहीं करना चाहिए बल्कि हो सके तो कन्या को यथासम्भव धन देना चाहिए। इसके अतिरिक्त कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी दूसरे को कष्ट हो।
क्या है व्रत का पुण्यफल?
इस व्रत के प्रभाव से जीव को संसार के सभी सुखों की प्राप्ति होती हैं तथा सभी पापों का क्षय हो जाता है तथा व्रती को गाय के दान, विद्या दान तथा कन्यादान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। जिस कामना से व्रत किया जाता है वह कामना भी सहज ही पूरी हो जाती है। संसार के सभी सुखों को भोगने के पश्चात अंत में मोक्ष फल मिलता है।
व्रत में क्या करें?
इस व्रत में भगवान मधुसूदन जी का विधिवत पूजन करें। रात्रि को जागरण करे। एक समय फलाहार करे। सत्संग में समय बिताएं, तुलसी पूजन करें, दीपदान करें, तुलसी की परिक्रमा करें। व्रत के अगले दिन ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान देकर स्वयं अन्न ग्रहण करें। यह व्रत क्योंकि वीरवार को है इसलिए पीले रंग के पुष्पों से भगवान की पूजा करें और पीले रंग के फलों का ही भगवान को भोग लगाएं। पीले रंग के वस्त्र और पीले रंग की वस्तुओं का दान करें। इसके अतिरिक्त गाय को चारा खिलाना सबसे श्रेष्ठ कर्म है।
क्या कहते हैं विद्वान- अमित चड्डा का कहना है कि हमारे सभी शास्त्रों के अनुसार भगवान को एकादशी तिथि अति प्रिय है, इसी कारण एकादशी व्रत करने पर जीव को सबसे अधिक पुण्यफल की प्राप्ति होती है। अम्बरीष जी महाराज की कथा सुनाते हुए चड्डा जी ने कहा कि अपनी सभी इन्द्रियों को प्रभु चरणों की सेवा में लगाना ही भगवान की सच्ची भक्ति एवं व्रत है। उनके अनुसार कोई भी व्रत तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक उसका विधिवत पारण न किया जाए। उन्होंने कहा कि वरुथनी एकादशी व्रत का पारण 13 अप्रैल को प्रात: सूर्य निकलने के बाद 7.19 से पहले किया जाना चाहिए।
वीना जोशी
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