Vastu: जल स्त्रोत से जुड़ी ये बातें, बदल सकती है आपकी किस्मत

Edited By Jyoti,Updated: 13 Apr, 2022 02:57 PM

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वास्तु शास्त्र के अनुसार घर निर्माण से लेकर घर में पड़ी हर छोटी-बड़ी चीज, इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान, पानी का स्थान, बल्कि हर कोना वहां रहने वाले

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर निर्माण से लेकर घर में पड़ी हर छोटी-बड़ी चीज, इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान, पानी का स्थान, बल्कि हर कोना वहां रहने वाले लोगों पर पूरा प्रभाव डालता है। वास्तु में जल स्थान की सरंचना के बारे में भी जानकारी दी गई है। कहा जाता है घर का निर्माण करवाते समय इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि जल स्त्रोत हमेशा सही जगह पर होना चाहिए। अगर ये गलत जगह पर हो तो घर-परिवार के लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
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आज हम आपको जल से जुड़ी ही कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं, जिनका वास्तु शास्त्र में उल्लेख किया गया है। तो आइए जानते हैं कहीं पर भी जल की संरचना करते समय व्यक्ति को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

वास्तु विशेषज्ञ बताते हैं कि जल स्रोत निर्माण के लिए खुदाई करने से पहले ध्यान दें कि धरा पर शीशम, सागवन, नीम,बेल आदि प्रजाति के वृक्ष सघनता में यानि स्थिरता में हो। ऐसा कहा जाता है ऐसी जगह पर जल की संरचना करने से वहां वास्तु दोष पैदा नहीं होते।

जिस भूमि की मिट्टी रेतीली, लाल रंग की, कसैली, पीली या भूरे रंग की हो, वहां खारा पानी मिलता है, तो वहीं इसके विपरीत जिस धरा का रंग मटमैला या धसूर हो, वहां खुदाई करने पर हमेशा मीठा जल निकलता है।
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अगर बात करें सर्वोत्तम प्रकार के जल स्त्रोत की तो कहा जाता है कि मंज भूमि, कांस, कुश इत्यादि से मिश्रित, नीले वर्ण की, कोमल बालू युक्त, काली तथा लाल रंग की भूमि को सर्वोत्तम प्रकार का मीठा जल प्रदान करने वाली माना जाता है।

आगे बताया गया है कि कबूतर, शहद, घी आदि के रंग वाली भूमि में पर्याप्त मात्रा में जल पाया जाता है। अतः व्यक्ति ऐसी भूमि पर खुदाई की जा सकती है। इसके अलावा जमीन के पत्थरों का रंग भी जल की पर्याप्तता का प्रमाण देते हैं। यदि इनका रंग लहसुनिया, मूंगा, बादल, मेचक या अधपके गूलर जैसा हो तो समझ लें वहां जल पर्याप्त मात्रा में होता है।

यहां जानें सूखे जल स्थान पुनः भरण कैसा करें-
बताया जाता है भूमिगत जल स्त्रोत प्रायः कुछ समय के उपरांत सूख जाते हैं। परंतु अगर नवीन जल स्त्रोत बार-बार सूख जाए तो उसके आस-पास रहने वाले लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

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तो ऐसे में पुष्य या आर्द्रा नक्षत्र के दिन सात सफेद कंकर लाएं, फिर इन कंकरों को वरुण देव मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके कुएं में डाल दें। इसके उपरांत गंध, पुष्प एवं धूप-दीप से बड़ या बेंत की लकड़ी की कील की पूजा करें तथा उसे जल स्थान की शिरा में गाड़ दें। ऐसा करने पर आश्चर्यजनक रूप में जल प्राप्ति होती है। 

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