लक्ष्मी को में स्थाई करना चाहते हैं तो पहले उनके भाई को लाएं घर

Edited By Jyoti,Updated: 25 Aug, 2019 05:13 PM

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कहा जाता है कि जो भी प्राणी भगवान शिव के डमरू का ब्रह्मनाद सुन लेता है, वह भवसागर के पार हो जाता है। उसके समस्त पापों का नाश होता है। संसार सागर से वह मुक्ति प्राप्त करता है।

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कहा जाता है कि जो भी प्राणी भगवान शिव के डमरू का ब्रह्मनाद सुन लेता है, वह भवसागर के पार हो जाता है। उसके समस्त पापों का नाश होता है। संसार सागर से वह मुक्ति प्राप्त करता है। जगत् जननी मां पार्वती भगवान शिव से पूछती है कि हे जगनियंता इस कलियुग में ब्रह्मनाद कैसे सुना जा सकता है? तब भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में हंसते हुए कहते हैं कि ''कलयुग में यदि कोई सच्चे मन से, निष्ठापूर्वक और भावपूर्ण तरीके से शंख ध्वनि सुनने का प्रयास करता है तो शंख से ब्रह्मनाद का श्रवण संभव है। कलिकाल में शुद्धात्मा से परिपूर्ण होकर शुद्ध मन और चेतनापूर्वक किए गए शंखनाद की ध्वनि सुनने मात्र से सांसारिक दुखों का निवारण हो जाता है।"
 
धार्मिक दृष्टि से ही शंखनाद की महत्ता नहीं है अपितु इसका सांस्कृतिक महत्व भी है। स्वास्थ्य वर्धन के लिए शंखनाद बड़ा उपयोगी है।
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शंख कई प्रकार के होते हैं। दक्षिणावर्ती शंख, साधनोपयोगी शंख, गणेश शंख आदि। प्रत्येक का भिन्न-भिन्न महत्व हैं। सम्पन्नता, सुख समृद्धि, आत्मशांति और पर्यावरण तथा वायुमंडल के शुद्धिकरण के लिए भी शंख की महिमा मानी गई है। पौराणिक समय में देवी-देवता अपने पास शंख रखते थे। महाभारत काल में तो प्रत्येक योद्धा का अपना शंख होता था। पांचजन्य कृष्ण के लिए और देवदत्त अर्जुन के लिए नामांकित है। दक्षिणावर्ती शंख जिस परिवार में होता है, वहां उसकी पूजा की जाती है, वह परिवार सदा सुखी और संपन्न रहता है। वहां धन की कमी कभी नहीं रहती। दक्षिणावर्ती शंख को सफेद कपड़े में लपेट कर काठ के बर्तन यो टोकरी में रखते हैं अथवा इसे सफेद कपड़े से बने हुए आसन पर रखा जाता है। दूध-चावल से पूजा की जाती है। इसका तांत्रिक महत्व भी है। आसुरी शक्तियां इससे काफी दूर रहती हैं इसीलिए तांत्रिक लोग दक्षिणावर्ती शंख की पूजा करते हैं। दक्षिणावर्ती शंख का मुंह दाईं ओर खुलता है। यह शंख अत्यधिक दुर्लभ है तथा सामान्यत: सफेद रंग का ही उपलब्ध होता है। कभी-कभी नीलाभ रंग का शंख मिल जाए तो उस पर हल्के भूरे रंग की धारियां होती हैं। मातेश्वरी लक्ष्मी को यह शंख प्रिय है क्योंकि दोनों का जन्म समुद्र से हुआ है अत: शंख लक्ष्मी का सहोदर भाई है। विशेष पर्व एवं त्योहारों पर इसका पूजन होता है।

मोती शंख की विशेषता है कि वह गोल आकार का होता है। इसमें एक सफेद धारी होती है जो ऊपर से नीचे तक खिंची होती है। यह मोती की तरह चमकदार होता है। व्यक्ति को संन्यासी बनाने में इसका विशेष प्रभाव रहता है। योग और ध्यान के लिए यह शंख महत्ती भूमिका का निर्वहन करता है। स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से यह शंख दक्षिणावर्ती शंख से भी अधिक प्रभावकारी है। रात भर इस शंख में रखे हुए पानी से यदि त्वचा धोई जाए तो त्वचा संबंधी सारे रोग समाप्त हो जाते हैं। यदि त्वचा पर सफेद दाग हो तो शंख को पानी में बारह घंटे रखें। उस पानी को कुछ दिन लगाते रहने से सफेद दाग नष्ट हो जाते हैं। रात भर इस शंख में पानी रखें और सुबह इसमें थोड़ा गुलाब जल डाल कर बालों को धोने से बालों की सफेदी थम जाती है। तांत्रिकों द्वारा तंत्र विद्या को प्रगाढ़ता देने के लिए शंख पूजा की जाती है। प्राचीन काल में तो परिवार के पूजा घर तथा मंदिरों आदि में शंखनाद सुनाई देता था ङ्क्षकतु अब धीरे-धीरे इसका प्रचलन कम हो गया है। शंख को सुख-संपन्नता, समृद्धि और यश-कीर्ति के लिए लक्ष्मी का प्रतिरुप माना गया है। शंखों के अन्य तीन प्रकार निम्रलिखित हैं :
PunjabKesari, शंख, Conch1. दक्षिणावर्ती 2. मध्यावर्ती 3. वामावर्ती। जो शंख दाहिने हाथ से पकड़ा जाता है वह दक्षिणावर्ती शंख है। जो बीच में अंगुली डालकर पकड़ा जाता है तथा जिस शंख का मुंह मध्य भाग में होता है उसे मध्यावर्ती और जो शंख बाएं हाथ से पकड़ कर बजाया जाता है, वह वामावर्ती शंख कहलाता है। शंख और भी अनेक प्रकार के होते हैं यथा-गोमुखी, लक्ष्मी, कामधेनु, विष्णु देव, चक्र, सुघोश, मणिपुष्पक, शनि, राहू, केतु, शेषनाग, राक्षस, कच्छप आदि। यदि परिवार में कलह व्याप्त है तो शंख में गाय का दूध भरकर छिड़काव करें और भवन में वास्तु दोष हो तो घर में शंख रखना चाहिए। वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर माना जाता है कि गर्भवती महिला को शंख का जल पिलाने से उत्तम कोटि की संतान जन्म लेती है।

श्वास और फेफड़ों के रोग दूर करने के लिए प्रतिदिन शंख बजाना लाभप्रद है। शंख में कैल्शियम व फास्फोरस की मात्रा होती है। इसमें गंधक के गुण व्याप्त हैं इसीलिए इसमें  जल भरकर रखते हैं। शंख में कैल्शियम व फॉस्फोरस की मात्रा होती है। इसमें गन्धक के गुण व्याप्त हैं इसीलिए इसमें जल भरकर रखते हैं। शंख ध्वनि जहां तक प्रसारित होती है वहां तक के रोगाणु नष्ट हो जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार शंख के पानी से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं। यह पानी आयुवर्धक है। शंख की भस्म से कई प्रकार की औषधियां निर्मित होती हैं। पुराणों के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवतुल्य माना गया है।

मान्यता है कि शंख के मध्य भाग में वरूण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती बिराजती है। समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में शंख का आठवां स्थान है। उच्च कोटि के शंख कैलाश मानसरोवर, मालदीव, लक्ष्यद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका व भारत में पाए जाते हैं। शास्त्रों में इसे महौषधि माना गया है। शंख में पंचतत्वों का संतुलन बनाए रखने की अपार क्षमता होती है। उत्सव, पर्व, विवाह, पूजा-पाठ, हवन, आरती जैसे समय में शंख बजाना मंगलमय माना जाता है।
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घर में दो शंख रखना अशुभ माना गया है। शंख की पवित्रता बनाए रखने के लिए इन्हें पूजाघर तथा पवित्र स्थानों पर रखना चाहिए। शंख के अपवित्र हो जाने के कुछ कारण भी हैं। इनसे बचाव आवश्यक है, जैसे-

दरार पड़ना व चटक जाना

टूटना-फूटना

जो शंख नहीं बजता हो

बजाते समय हाथ से गिर जाना

शंख ध्वनि में अंतर आ जाना

आकृति का सुंदर नहीं लगना

टूटे हुए शंखों को नदी या तालाब में प्रवाहित कर देना चाहिए। लक्ष्मी साधना का सर्वश्रेष्ठ दिन दीपावली माना गया है। इस दिन दक्षिणावर्ती शंख को घर के पूजाघर में स्थापित कर पूजा अर्चना की जानी चाहिए। शंख पर कुमकुम से स्वस्तिक चिन्ह अंकित करें तथा बांये हाथ से चावल का एक-एक दाना नित्य प्रति जाप के साथ उसमें समाहित करे। जब वह पूरा भर जाए तो चावल के दानों के साथ शंख को रेशमी लाल वस्त्र में बांधकर व्यावसायिक प्रतिष्ठान के कार्यालय में स्थापित कर दें जो सुख-समृद्धि प्रदान करेगा।

बच्चों की वाणी संबंधी विकारों को नष्ट करने के लिए भी शंख का पानी लाभदायक होता है। इसके द्वारा कुंडलिनी जागरण का भी विधान है। शंख पवित्रता का परिचायक हैं।

इसे पूजा स्थल पर रखा जाना चाहिए। भारतीय संस्कृति में शंख पूजनीय एवं समस्त सुखों का प्रदाता माना गया है। अत: आस्था एवं निष्ठापूर्वक विधि-विधान से जो शंख का रख-रखाव करते है, उनकी श्री वृद्धि अवश्य होती है।  —शंकर लाल माहेश्वरी
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