Vat Savitri Vrat 2022: अखंड सौभाग्य के लिए इस विधि से करें पूजा और पढ़ें कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 30 May, 2022 07:42 AM

vat savitri vrat

भाग्य और संतान की प्राप्ति में सहायता करने वाला वट सावित्री व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक व्रत माना गया है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री सत्यवान की कथा स्मरण के विधान के कारण ही

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Vat Savitri Vrat 2022: संतान प्राप्ति में सहायता करने वाला वट सावित्री व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक व्रत माना गया है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री सत्यवान की कथा स्मरण के विधान के कारण ही यह वट सावित्री व्रत के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह व्रत शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर लाई थी। इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन (बरगद) की पूजा की जाती है। इस व्रत का पालन करके महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगल कामना करती है। 

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Vat savitri vrat katha: इस बारे प्रचलित कथा के अनुसार भद्र देश के राजा अश्रुपति के घर अत्यंत रूपवान कन्या सावित्री का जन्म हुआ। योग्य वर न मिलने के कारण राजा अश्रुपति ने दुखी होकर सावित्री को स्वयं अपना वर तलाशने को भेजा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहां साल्व देश के राजा जिनका राज्य छीन लिया गया था अपने पुत्र सत्यवान के साथ जंगलों में निवास कर रहे थे। 

सत्यवान को देखकर सावित्री ने उसे वर के रूप में वरण किया। सत्यवान वेदों का ज्ञाता था मगर अल्प आयु था। नारद मुनि ने सावित्री से मिल कर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी मगर सावित्री ने कहा मैं आर्य कन्या हूं मैं सत्यवान का वरण कर चुकी हूं। ये चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, मैं अपने हृदय में किसी दूसरे को स्थान नहीं दे सकती। 

सावित्री ने नारद मुनि से सत्यवान की मृत्यु के समय का पता कर लिया। नारद जी के बताए हुए समय से तीन दिन पूर्व ही सावित्री ने उपवास शुरू कर दिया। निश्चित दिन जब सत्यवान लकड़ी काटने जंगल के लिए चला तो सास-ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री भी उसके साथ चल पड़ी। 

सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ा तो उसके सिर में भयंकर पीड़ा होने लगी। वह नीचे उतरा तो सावित्री ने उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। देखते ही देखते यमराज ने ब्रह्मा जी के विधान की रूपरेखा सावित्री के सामने प्रकट कर दी और सत्यवान के प्राणों को लेकर चल दिए। कहीं-कहीं ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि सत्यवान को सर्प ने डंस लिया था। 

सावित्री सत्यवान के शरीर को वट वृक्ष के नीचे लिटा कर यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज ने सावित्री को वापस लौट जाने को कहा तो सावित्री ने कहा, ‘‘जहां पति वहीं पत्नी। यही धर्म है यही मर्यादा है।’’ 

सावित्री की धर्मनिष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने अपने पति के प्राणों के अतिरिक्त कोई अन्य वर मांगने को कहा तो सावित्री ने यमराज से सास-ससुर की नेत्र ज्योति और दीर्घायु मांगी। यमराज ने तथास्तु कह दिया। इसके बाद भी सावित्री यमराज के पीछे चलती रही तो दोबारा यमराज ने उसे वापस लौट जाने को कहा तो सावित्री ने उत्तर दिया कि पति के बिना नारी जीवन की सार्थकता नहीं। अब यमराज ने सावित्री के पतिव्रत धर्म से खुश होकर दूसरा वर मांगने को कहा तो सावित्री ने सास-ससुर का राज्य वापस दिलाने को कहा। यमराज इस पर भी तथास्तु कह कर आगे बढ़ गए। सावित्री फिर भी यमराज के पीछे चलती रही। 

तीसरे वर के रूप में उसने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांग लिया। यमराज ने फिर तथास्तु कह दिया। सावित्री फिर भी यमराज के पीछे चलती रही और बोली आपने मुझे सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान तो दे दिया है परंतु अपने पति के बिना मैं किस प्रकार मां बन सकती हूं। 

सावित्री ने यमराज से अपना तीसरा वरदान पूरा करने को कहा। सावित्री की धर्मनिष्ठा, ज्ञान, विवेक तथा पति धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणों को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया। 

सावित्री सत्यवान के प्राणों को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुंची जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की। शास्त्रों के अनुसार वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास माना जाता है। परिक्रमा के उपरांत सावित्री ने देखा कि सत्यवान जीवित हो उठा है। वह उसे साथ लेकर सास-ससुर के पास पहुंची तो उन्हें नेत्र ज्योति प्राप्त हो गई तथा उनका राज्य उन्हें वापस मिल गया।

यह व्रत शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मानने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर लाई थी। 

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How to do Vat Savitri Puja, pooja procedure विधि : व्रत के लिए पूजा स्थल पर रंगोली बनाएं। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर उस पर लक्ष्मी नारायण, शिव पार्वती की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें। तुलसी का पौधा रखें, गणेश एवं माता गौरी की पूजा करें और फिर वट वृक्ष की पूजा करें। पूजा में जल, रोली, कच्चा सूत, भिगोया चना, फूल, अगरबत्ती का प्रयोग करें। 

व्रत के उपरांत अपनी इच्छानुसार वट वृक्ष की 7, 11, 21, 51, 101 परिक्रमा करें। गुड़, चने का प्रसाद बांटें।  

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