Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Jun, 2017 02:48 PM
आधुनिक काल में लोग अपनी सहूलियत के अनुसार परंपराओं को तोड़-मरोड़ लेते हैं। जोकि जघन्य अपराध है। हमारे ऋषि-मुनियों ने
आधुनिक काल में लोग अपनी सहूलियत के अनुसार परंपराओं को तोड़-मरोड़ लेते हैं। जोकि जघन्य अपराध है। हमारे ऋषि-मुनियों ने अपने अनुभवों को आधार पर कुछ नियम निर्धारित किए थे। जो जितने उपयोगी उस समय में थे उतने आज भी हैं। हिंदू वैदिक शास्त्रों में ऐसे वचन दिए गए हैं, जिन्हें अपनाने से व्यक्ति का सभी तरफ से कल्याण होता है और मुस्कराती है जिंदगी।
देवपूजा सदा पूर्व, पूर्व-उत्तरी अथवा उत्तर-दिशा की ओर मुख करके करनी चाहिए। पितर तर्पण, पूजन दक्षिण की ओर मुंह करके करने चाहिएं। इन दिशाओं में टायलेट या बाथरूम भूल कर भी नहीं होना चाहिए।
गीले वस्त्रों को पहन कर या हाथ घुटनों से बाहर करके आप जो भी पूजा, हवन, दान करते हैं वह निष्फल हो जाता है।
पूजा में बैठने के लिए आसन कुशा, कम्बल (लाल, पीले, सफेद रंग) का हो।
तिलक लगाए बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता। तिलक कोई भी हो चंदन, गेंदे के पुष्प पत्ती के रस, केले की जड़ का रस उसमें केसरी सिंदूर, केसर घुटा हुआ हो। भगवान की मूर्ति को तिलक करके फिर मस्तक पर नीचे से ऊपर की ओर अनामिका उंगली से तिलक लगाएं।
भगवान को ताम्रपात्र, चांदी के पात्र में रखी हुई वस्तु ही अर्पित करें, भगवान को वही स्वीकृत एवं प्रिय होती है।
पूजन में दीपक अति आवश्यक एवं शुभ होता है, देसी घी का दीपक मूर्ति के दाएं और तेल का बाईं ओर चाहिए। दीपक का पूजन भी आवश्यक है। दीप प्रज्वलन के बाद हाथ धो लेने चाहिएं।
गणेश जी को तर्पण एवं दूर्वा (हरी घास के तिनके) चढ़ाने चाहिएं, दुर्गा जी को अर्चना, शिव को अभिषेक (जल, दूध, ईख का रस, फलों का रस) विजय प्राप्ति के लिए तेल से अभिषेक प्रिय है।