विदुर नीति: एेसे व्यक्ति न करने योग्य इंसान पर भी कर लेते हैं विश्वास

Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Jan, 2018 02:20 PM

vidur neeti in hindi

विदुर जी जिन्हें महाभारत में बहुत महानता प्राप्त हुई। उनकी नीतियां महाभारत के समय में भी बहुत उपयोगी साबित हुई थी। वे महाराज धृतराष्ट्र के महामंत्री थे तथा इन्होंने महाभारत के युद्ध को टालने का हरसंभव प्रयास किया था

विदुर जी जिन्हें महाभारत में बहुत महानता प्राप्त हुई। उनकी नीतियां महाभारत के समय में भी बहुत उपयोगी साबित हुई थीं। वे महाराज धृतराष्ट्र के महामंत्री थे तथा इन्होंने महाभारत के युद्ध को टालने का हरसंभव प्रयास किया था परंतु इसमें असफल रहे। लेकिन युद्ध के बाद पांडवों ने उनकी ही आज्ञा तथा सलाह-मशविरा लेकर शासन आरंभ किया और आदर्श राज्य की स्थापना की। यदि व्यक्ति आज भी इनकी बातों पर ध्यान दे तो शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो सकती है। उनके इन उपदेशों को विदुर नीति के नाम से जाना जाता है। आगे जानें विदुर जी नीतियों के श्लोक के बारे में-


श्लोक- एकं हन्यान्न वा हन्यादिषुर्मुक्तो धनुष्मता।
बुद्धिर्बुद्धिमतोत्सृष्टा हन्याद् राष्ट्रम सराजकम्।। 


अर्थ: किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे। मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।


श्लोक-अनाहूत: प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते।
अविश्वस्ते विश्वसिति मूढ़चेता नराधम:।।


अर्थ: मूढ़ चित्त वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं हैं उनपर भी विश्वास कर लेता है।


श्लोक- त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम नाशनमात्मन: । 
काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्।। 


अर्थ- काम, क्रोध, और लोभ– ये आत्मा का नाश करने वाले नरक के तीन दरवाजे हैं, अतः इन तीनों को त्याग देना चाहिए। 


महाभारत में विदुर जी ने धृतराष्ट्र को बताया था कि यदि किसी व्यक्ति के मन में काम, क्रोध अथवा लोभ का भाव आ जाए तो उसे नींद नहीं आती है। जब तक ऐसे व्यक्ति की इच्छाएं तृप्त नहीं हो जाती है, तब तक वह सो नहीं सकता है। काम, क्रोध तथा लोभ की भावना व्यक्ति के मन को अशांत कर देती है और वह किसी भी कार्य को ठीक से नहीं कर पाता है। यह भावना स्त्री और पुरुष दोनों की नींद उड़ा देती हैं। इसके साथ ही कामभाव व्यक्ति को सदैव पतन की ओर ले जाता है। अतः अपने जीवनसाथी के अतिरिक्त अन्य किसी के प्रति कामभाव नहीं रखना चाहिए और उसमें भी अति कामभाव से सदा दूर ही रहना चाहिए। 

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