Vijaya Ekadashi 2020: सुदर्शन चक्र देता था भक्त के द्वार पर पहरा, एक दिन हुआ कुछ ऐसा...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Feb, 2020 09:03 AM

vijaya ekadashi 2020

भक्तराज अम्बरीष महाराज नाभाग के पुत्र थे। वे सप्तद्वीपवती पृथ्वी के एकमात्र सम्राट थे। सम्पूर्ण ऐश्वर्य के अधीश्वर होते हुए भी संसार के भोग पदार्थों में उनकी जरा भी आसक्ति न थी। उनका सम्पूर्ण जीवन भगवान की

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भक्तराज अम्बरीष महाराज नाभाग के पुत्र थे। वे सप्तद्वीपवती पृथ्वी के एकमात्र सम्राट थे। सम्पूर्ण ऐश्वर्य के अधीश्वर होते हुए भी संसार के भोग पदार्थों में उनकी जरा भी आसक्ति न थी। उनका सम्पूर्ण जीवन भगवान की सेवा में समर्पित था। जो अनन्य भाव से भगवान की शरणागति प्राप्त कर लेता है। उसके योग-क्षेम का सम्पूर्ण भार भगवान अपने ऊपर ले लेते हैं, इसीलिए महाराज अम्बरीष की सुरक्षा के लिए भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र को नियुक्त किया था। सुदर्शन चक्र गुप्त रूप से भगवान की आज्ञानुसार महाराज अम्बरीष के राजद्वार पर पहरा दिया करते थे।

एक समय महाराज अम्बरीष ने अपनी रानी के साथ भगवान श्रीकृष्ण की प्रीति के लिए वर्ष भर के एकादशी का अनुष्ठान किया। अंतिम एकादशी के दूसरे दिन भगवान की साविधि पूजा की गई। ब्राह्मणों को भोजन कराया गया और उन्हें वस्त्र एवं आभूषणों से अलंकृत गौएं दान में दी गईं। तदनंतर राजा अम्बरीष पारण की तैयारी कर ही रहे थे कि अचानक महर्षि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ पधारे। अतिथि प्रेमी महाराज ने उनका अतिथि-सत्कार करने के बाद उनसे भोजन करने के लिए निवेदन किया। दुर्वासा जी ने उनके निवेदन को स्वीकार किया और मध्याह्न संध्या के लिए यमुना तट पर चले गए। द्वादशी केवल एक घड़ीमात्र शेष थी। द्वादशी में पारण  न होने पर महाराज को व्रत भंग का दोष लगता, अत: उन्होंने ब्राह्मणों की आज्ञा से भगवान का चरणोदक पान कर लिया और भोजन के लिए दुर्वासा जी की प्रतीक्षा करने लगे।

दुर्वासा जी जब अपने नित्य कर्म से निवृत्त होकर राजमहल लौटे, तब उन्हें तपोबल से राजा के द्वारा भगवान के चरणामृत से पारण की बात अपने आप मालूम हो गई। उन्होंने क्रोधित होकर महाराज अम्बरीष से कहा, ‘‘मूर्ख! तू भक्त नहीं ढोंगी है। तूने मुझ अतिथि को निमंत्रण देकर भोजन कराने से पहले ही भोजन कर लिया है  इसीलिए मैं कृत्य के द्वारा अभी तुझे नष्ट कर देता हूं।’’

ऐसा कहकर उन्होंने अपने मस्तक से एक जटा उखाड़ कर पृथ्वी पर पटकी जिससे कालाग्रि के समान एक कृपा उत्पन्न हुई। वह भयानक कृत्या तलवार लेकर अम्बरीष को मारने के लिए दौड़ी। उसके अम्बरीष तक पहुंचने के पूर्व ही भगवान के सुदर्शन चक्र ने उसे जला कर भस्म कर दिया। कृत्या को समाप्त करके सुदर्शन चक्र ने मारने के लिए दुर्वासा का पीछा किया।

दुर्वासा जी अपनी रक्षा के लिए तीनों लोकों और चौदहों भुवनों में भटके किंतु भगवान और भक्त के द्रोही को किसी ने भी आश्रय और अभय नहीं प्रदान किया। अंत में दुर्वासा जी भगवान विष्णु के पास गए। भगवान ने भी उनसे कहा, ‘‘मैं तो भक्तों के अधीन हूं। मैं भी आपकी रक्षा करने में असमर्थ हूं। आपकी रक्षा का अधिकार केवल अम्बरीष को ही है, अत: आपको उन्हीं की शरण में जाना चाहिए। अंतत: दुर्वासा जी व्याकुल होकर अम्बरीष की शरण में गए और पहुंचते ही उनके चरण पकड़ लिए। अम्बरीष उनकी प्रतीक्षा में तभी से खड़े थे जब से चक्र ने उनका पीछा किया था। उन्होंने सुदर्शन चक्र की स्तुति की और दुर्वासा को क्षमादान दिलाया। यह है भगवान की भक्ति की शक्ति और भक्त की करुणा। दुर्वासा जी भगवान की भक्ति की शक्ति को प्रणाम करके अम्बरीष गुणगान करते हुए तपस्या के लिए वन को चले गए।’’

 

 

 

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