विजयादशमी 2019: यहां का दशहरा होता है बहुत ही खास

Edited By Lata,Updated: 08 Oct, 2019 11:01 AM

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बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है दशहरा, इस साल 8 अक्टूबर दिन मंगलवार यानि कि आज मनाया जा रहा है।

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बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है दशहरा, इस साल 8 अक्टूबर दिन मंगलवार यानि कि आज मनाया जा रहा है। विजयादशमी का त्योहार देश के हर कोने में बड़ी ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इसकी रौनक हर जगह देखने को मिलती है। वहीं हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में ये बहुत ही खास तरीके से मनाया जाता है। यहां दशहरा का त्योहार 17वीं शताब्दी से मनाया जा रहा है। यहां पर एक खास परंपरा है जोकि सदियों से चली आ रही है। जिसमें लोग अलग-अलग भगवानों की मूर्ति को सिर पर रखकर भगवान राम से मिलने के लिए जाते हैं। आज हम आपको इससे जुड़े इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं। 
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कुल्लू दशहरे का इतिहास 
पौराणिक मान्यताओं अनुसार 16वीं शताब्दी में कुल्लू पर राजा जगत सिंह का शासन हुआ करता था। राजा को जब पता चला कि उनके नगर में दुर्गादत्त नामक एक व्यक्ति है जिसके पास कीमती मोती हैं। राजा ने उससे उन मोतियों को देने का आग्रह किया। बदले में उसे हर वो चीज़ देने की बात कही जिसकी उसे जरूरत थी। दुर्गादत्त ने भी राजा का बार-बार समझाया कि उसके पास ऐसे कोई मोती नहीं। अंत में राजा के अत्याचार से परेशान होकर उसने अपने परिवार समेत आत्महत्या कर ली और राजा को श्राप दिया कि वो भी जिंदगी में हमेशा परेशान ही रहेगा। जिसके बाद राजा की हालत खराब होने लगी। मदद के लिए वो एक ब्राह्मण के पास गया। राजा ने उसे बताया कि सिर्फ भगवान राम ही उसके इस कष्ट को दूर कर सकते हैं। जिसके लिए उन्हें अयोध्या से राम की मूर्ति लानी होगी। राजा ने अपने सेवकों को आदेश दिया और वो मूर्ति कुल्लू ले आए। जहां भगवान के चरणअमृत से राजा की जान बची। बाद में मूर्ति को वापस अयोध्या ले जाने लगे तो मूर्ति आगे बढ़ते ही बहुत भारी हो जाती और कुल्लू की तरफ आते ही हल्की। जो आज भी कुल्लू दशहरे का खास आकर्षण होता है। 
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खास है दशहरा
हिमाचल के कुल्लू में 8 दिनों तक चलने वाला दशहरा इतना खास होता है कि देश-विदेश से लोग इसे देखने के लिए आते हैं। दशहरे का पर्व जहां कुल्लू के लोगों के लिए भाईचारे का मिलाप है तो घाटी में रहने वाले लोगों के खेती और बागवानी कार्य समाप्त होने के बाद ग्रामीणों की खरीदारी के लिए भी खास होता है। 
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कुल्लू में रहने वालों के लिए दशहरा का मतलब सिर्फ मेला नहीं बल्कि देव समागम, पुरानी संस्कृति और विविधता में एकता का अध्ययन एवं शोध करने वालों के लिए भी बड़ा अवसर है। शहर का सबसे खास आकर्षण है 17वीं शताब्दी में कुल्लू के राजपरिवार द्वारा देव मिलन से शुरु हुआ महापर्व यानि कुल्लू दशहरा है। इस दौरान अंतरराष्ट्रीय लोक उत्सव कुल्लूमेला, नैना देवी में स्थानीय ही नहीं बाहर से आए पर्यटकों की बड़ी तादाद होती है। मेले की शुरूआत में भगवान रघुनाथ की शोभयात्रा निकाली जाती है। जिसका नजारा बहुत ही अद्भुत होता है।

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