Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Aug, 2019 07:51 AM
शांति, शांति, शांति तीन बार शांति कहने से मन मस्तिष्क को शांति मिलती है, यह शास्त्रों में वर्णित शब्द है, लेकिन शांति को पाने के लिए तीन बार शांति कह देना मात्र पर्याप्त नहीं है। शांति एक संस्कार है,
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शांति, शांति, शांति तीन बार शांति कहने से मन मस्तिष्क को शांति मिलती है, यह शास्त्रों में वर्णित शब्द है, लेकिन शांति को पाने के लिए तीन बार शांति कह देना मात्र पर्याप्त नहीं है। शांति एक संस्कार है, एक वैचारिक शक्ति है, एक स्थिर अनुभूति है, जिसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष, आत्मनियंत्रण व आत्मशक्ति की जरूरत पड़ती है। सचमुच में आप आंतरिक ऊर्जा व शांति प्राप्त करना चाहते हैं, साइलेंट मोड पर चल रही अपनी लाइफ के अधूरे एहसास को पूरा करने की इच्छा रखते हैं तो याद रखें ये बातें -
आप चेष्टा करें कि यथासंभव सात्विक भोजन ही करें। तामसिक भोजन मन मस्तिष्क को अस्थिर करता है। मांस, मदिरा, अंडा इत्यादि के सेवन से शारीरिक वासना चरम सीमा पर पहुंच जाती है, इससे मन अस्थिर हो जाता है।
तामसिक भोजन ब्लड प्रेशर को बढ़ाता है। आप लाख कोशिश करें मगर आपको तामसिक भोजन की आदत लग जाने पर आपकी जीभ मांस का स्वाद ही चाहेगी और आपकी मनोवृत्ति दूषित होगी, शांति नष्ट होगी।
सुख-दुख, योग-वियोग किसी के भी जीवन में आते-जाते रहते हैं, इसलिए कोई भी चीज सदा के लिए हमारी नहीं रहती। हम भी सदा के लिए धरती पर नहीं रह पाते। हमें अपने ज्ञान को उजागर कर शांति पानी होगी।
हम अगर अपने अंदर ईर्ष्या, द्वेष, निर्दयता, निष्ठुरता, छोटे-छोटे कामों में भी गलतियां ढूंढने जैसे दुर्गुणों को पनपाते हैं, तो हम स्वत: अशांति की ओर खिंचते चले जाते हैं। मन: स्थिति को काबू में नहीं रख पाते हैं, इसलिए भावनाओं को नियंत्रण में रखना पहले से ही प्रारंभ करना चाहिए। अपनी बुरी आदतों को दबाकर सद्गुणों को उभारना चाहिए, शांति आएगी।
हम ईर्ष्या, द्वेष से दूसरों को चोट पहुंचाते हैं, दूसरों के मन को अशांत करते हैं। मगर हमारी इस तरह की गतिविधियों का सैंकड़ों गुना बुरा असर हम पर पड़ेगा, हम अशांत होकर भटकते रहेंगे।