अनीति से अर्जित किया धन बन जाता है "जहर"

Edited By Jyoti,Updated: 05 May, 2021 05:50 PM

wealth earned from immorality becomes poison

कलियुग में दान प्रधान है। श्रुति में निर्देश है कि जो सिर्फ अपने लिए पकाकर खाता है, वह अन्न नहीं खाता, पाप पका कर खाता है-

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
कलियुग में दान प्रधान है। श्रुति में निर्देश है कि जो सिर्फ अपने लिए पकाकर खाता है, वह अन्न नहीं खाता, पाप पका कर खाता है-

‘केवलाधो भवति केवलादी।’

अत: अन्न दान को सर्वोपरि दान कहा गया है।

दान पर टिका कलियुग
कलियुग का धर्म केवल एक पैर अर्थात दान के ऊपर टिका हुआ है। ईमानदारी, परिश्रम तथा धर्म के अनुसार अर्जित धन-संपत्ति का दान ही पुण्यदायक होता है। लक्ष्मी माता हैं। उनका सत्कर्म के लिए उपयोग तो किया जाता है परंतु सांसारिक सुख-सुविधाओं के लिए व्यक्तिगत लाभ के लिए उनका उपभोग नहीं किया जाना चाहिए। अर्थ अमृत है पर असावधानी से वह जहर भी बन जाता है। जो नीति से आए और जिसका उपयोग रीति से हो वह अर्थ अमृत है पर अनीति से अर्जित धन जहर बन जाता है। यदि धर्म की मर्यादा न रहे तो धन अनर्थ करता है। धन साधन है, धर्म साध्य है। धन कमाना कठिन नहीं है, उसका धर्म कार्य सेवा, सहायता, दान आदि के रूप में सदुपयोग करना कठिन है। धन का धार्मिक कर्तव्यों-दान, सेवा, गौ सेवा जैसे सत्कर्म में सदुपयोग हो तो वह सुख देता है और विलासिता आदि दुष्कर्मों में उपभोग करने पर तरह-तरह के दुख देता है।

सबसे श्रेष्ठ दान
ज्ञान दान श्रेष्ठ दान है। अन्नदान और वस्त्र दान से कुछ समय के लिए शांति प्राप्त होती है किन्तु ज्ञान दान अर्थात जहां अध्यात्म ज्ञान का दान होता है उसमें सारे तीर्थ आ जाते हैं।

दान के नियम और फल
दान देने का अधिकार गृहस्थ को दिया गया है। दान में विवेक रखो। इतना दान दो कि गृहस्थ की आवश्यकता की पूॢत में बाधा में बाधा न आए। दान से धन की शुद्धि, स्नान से तन की शुद्धि तथा ध्यान से मन की शुद्धि होती है। जिसका धन शुद्ध नहीं उसका दान तथा उसकी सहायता स्वीकार नहीं करनी चाहिए। यदि सत्कर्मों में धर्म में स पत्ति का सदुपयोग करोगे तो लक्ष्मी माता नारायण की गोद में बैठाएंगी। धन का दान करते रहने से धन के प्रति ममता कम होती है तथा तन में सेवा करने से  देहाभिमान में कमी आती है। दान देते समय जब तुम लेने वाले को परमात्मा का रूप समझ कर दान दो तभी दान सफल-सार्थक होता है। आंगन में आए याचक को यदि कुछ नहीं मिलता तो वह घर का पुण्य ले जाता है।

वे मांगने नहीं ज्ञान देने आते हैं
याचक मांगने नहीं आता, वह तो आपको ज्ञान देने आता है कि पूर्व जन्म में मैंने किसी को कुछ दिया नहीं, इसलिए मैं भिखारी हुआ हूं। यदि आप भी किसी को कुछ न देंगे तो अगले जन्म में मेरे जैसे याचक बनेंगे।

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