Edited By Jyoti,Updated: 30 Jun, 2019 10:49 AM
अगर ज्योतिष शास्त्र की दृष्टिकोण से देखा जाए तो मानव जीवन के सभी सुख और दुख उसके अपने कर्मों के साथ-साथ ग्रह गोचर और नक्षत्रों के प्रभाव पर भी निर्भर करता है। बता दें इन ग्रह गोचर में कोई एक नहीं बल्कि सभी नौ ग्रहों विशेष महत्व रखते हैं।
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अगर ज्योतिष शास्त्र की दृष्टिकोण से देखा जाए तो मानव जीवन के सभी सुख और दुख उसके अपने कर्मों के साथ-साथ ग्रह गोचर और नक्षत्रों के प्रभाव पर भी निर्भर करता है। बता दें इन ग्रह गोचर में कोई एक नहीं बल्कि सभी नौ ग्रहों विशेष महत्व रखते हैं। जिनमें से एक है सूर्य ग्रह, जिसे सभी ग्रहों के राजा का दर्जा प्राप्त है। आज हम आपको इन्हीं ग्रहों से जुड़ी एक बात बताने जा रहे हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
क्या आपने ग्रहण का नाम सुना है। जी हां, वहीं जिसके लिए ज्योतिष शास्त्र में बहुत हिदायतें दी गई हैं। मगर आख़िर ये ग्रहण दोष पैदा होता कैसे? ग्रहों और नक्षत्रों में ऐसा कौन सा हेर-फेर होता है कि ग्रहण दोष पैदा होता है? अगर आपके पास भी इन प्रश्नों का उत्तर नहीं है तो चलिए हम आपको बताते हैं कि ज्योतिष शास्त्र में इसका महत्व है और जुड़ी कुछ अन्य बातें-
बता दें ग्रहण के समय जब सूर्य के साथ राहु या केतु में से कोई एक ग्रह आता है तब ग्रहण दोष पैदा होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मानव की जन्म कुंडली में कई योग और दोष बनते हैं। जिसके प्रभाव से इंसान को जीवन में सफलता और असफलता प्राप्त है। साथ ही बताते चलें जब कभी सूर्य या चंद्रग्रहण लगता है तो इसके कारण मानव की कुंडली में ग्रहण दोष बनता है।
ग्रहण दोष एक अशुभ दोष कहलाता है जिसकी वजह से जातक को अपने जीवन में अनेक प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। माना जाता है जब इंसान की लग्न कुंडली के 12वें भाव में चंद्रमा के साथ राहु या केतु में से कोई एक ग्रह रहता है तब ग्रहण दोष बनता है।
इसके अलावा अगर सूर्य या चंद्रमा के भाव में राहु-केतु में से कोई एक ग्रह स्थित होता है तब भी कुंडली में ग्रहण दोष का निर्माण होता है। ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है ग्रहण दोष के प्रभाव से जीवन में पल-पल पर मुसीबतें आती हैं। खासतौर पर जातक को नौकरी और व्यवसाय से जुड़ी कई प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।