Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Dec, 2018 04:58 PM
भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष सिर्फ एक मनका नहीं बल्कि चिकित्सीय चमत्कार भी है। रुद्राक्ष में जीवन-मरण, यश-अपयश, लाभ-हानि से लडऩे की शक्ति मिलती है।
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भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष सिर्फ एक मनका नहीं बल्कि चिकित्सीय चमत्कार भी है। रुद्राक्ष में जीवन-मरण, यश-अपयश, लाभ-हानि से लडऩे की शक्ति मिलती है। यही वजह है कि हजारों सालों से इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। रुद्राक्ष शब्दों के जोड़ रुद्र+अक्ष से बना है। रुद्र यानी भगवान शिव और अक्ष यानी आंसू अर्थात भगवान शंकर के आंसुओं से जो पौधा अस्तित्व में आया, वह रुद्राक्ष कहलाया। वैदिक ग्रंथों के अनुसार रुद्राक्ष में ग्रहों के दुष्प्रभाव कम करने की अद्भुत शक्ति होती है। यह भी मान्यता है कि रुद्राक्ष चाहे कितने भी मुख का क्यों न हो, उसे पहनने से किसी तरह का नुक्सान नहीं होता।
रुद्राक्ष सोमवार या भगवान शिव से जुड़े किसी भी दिन पहना जा सकता है। पहनने से पहले उसे दूध,शहद या घी से धोकर प्राण-प्रतिष्ठा कर लेनी चाहिए। ‘ओम नम: शिवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करना भी ठीक रहता है।
रुद्राक्ष से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें: कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति से अपना रुद्राक्ष नहीं बदलना चाहिए। रुद्राक्ष हमेशा चांदी, सोने, तांबे या पंचधातु में पहनना चाहिए। इसे धागे में भी पहना जा सकता है। सभी रुद्राक्ष में समान गुण होते हैं। कोई भी रुद्राक्ष कमजोर नहीं होता। रुद्राक्ष पहनने से एकाग्रता तथा स्मरण शक्ति मजबूत होती है। रुद्राक्ष न तो नकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है और न ही इसे पहनने से किसी तरह के बुरे प्रभाव पड़ते हैं। रुद्राक्ष पहनने के 40 दिनों के भीतर व्यक्तित्व में परिवर्तन दिखाई देता है। रुद्राक्ष हमेशा साफ रखना चाहिए। इन्हें पूजा घर में रखा जाना श्रेष्ठ माना जाता है।
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