Kundli Tv- गरबा, गुजरात और नवरात्र क्या है इन तीनों का Connection

Edited By Jyoti,Updated: 14 Oct, 2018 04:09 PM

what is connection of garba gujarat and navaratr

शारदीय नवरात्र हो या चैत्र नवरात्र, मां अंबिका के भक्त उनकी पूजा में एकजुट हो जाते हैं। देश में चारों और नवरात्र के नौ दिन हर्षोल्लास से इस पर्व को मनाया जाता है। जैसे कोलकाता में इस महापर्व को दुर्गा पूजन के नाम से जाना जाता है तो गुजरात में...

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शारदीय नवरात्र हो या चैत्र नवरात्र, मां अंबिका के भक्त उनकी पूजा में एकजुट हो जाते हैं। देश में चारों और नवरात्र के नौ दिन हर्षोल्लास से इस पर्व को मनाया जाता है। जैसे कोलकाता में इस महापर्व को दुर्गा पूजन के नाम से जाना जाता है तो गुजरात में नवरात्र उत्सव के नाम से। गुजरात में पूरे नौ दिन गरबा-डांडिया का आयोजन किया जाता है, जिसमें रात को लोग एक साथ गरबा और डांडिया खेलते हुए धूम-धाम से देवी के इस त्योहार को मनाते हैं लेकिन क्या आप में से कोई जानता है कि आखिर नवरात्र के दौरान ही क्यों डांडिया-गरबा खेला जाता है। अगर नहीं, तो आइए आज हम बताते हैं आपको गरबा, गुजरात और नवरात्र का कनेक्शन।

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नवरात्र की नौ रातों में दुर्गा मां को प्रसन्न करने के लिए नृत्य का सहारा लिया जाता है। कहा जाता है कि वास्तु के अनुसार नवरात्र में गरबा करने से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं। वैसे देखा जाए तो प्राचीन समय से ही नृत्य को भक्ति और साधना का एक मार्ग माना गया है। गरबा करने के पीछ भी यही मान्यता प्रचलित है कि इसके जरिए भक्त मां को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।

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यहां जानें गरबा और नवरात्रि के बारे में-
क्या है गरबा का अर्थ
गरबा एक अपभ्रंश है, जिसका संस्कृत नाम गर्भ-द्वीप है। गरबा के आरंभ में देवी के निकट सछिद्र कच्चे घट यानि छेद वाला कच्ची मिटटी के घड़े को फूलों से सजा कर उसमें दीपक रखा जाता है। इस दीप को ही दीप गर्भ व गर्भ दीप कहा जाता है। 


जैसे-जैसे गर्भ द्वीप ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों तक पांव पसारे, इसका नाम परिवर्तित होता चला गया और अंत में इसे गरबा नाम दे दिया गया लेकिन नाम भले ही बदल गया लेकिन गर्भ द्वीप के जो रीति-रिवाज़ सर्वप्रथम किए जाते थे, वह आज भी उसी रूप में किए जाते हैं। जैसे कि गर्भ दीप के ऊपर एक नारियल रखा जाता है, नवरात्र की पहली रात गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती है। इसके बाद महिलाएं इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं। गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा-डांडिया और मंजीरा आदि का इस्तेमाल ताल देने के लिए किया जाता है। महिलाएं समूह में मिलकर नृत्य करती हैं। इस दौरान देवी के गीत गाए जाते हैं।

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तीन ताली का रहस्य
आपने देखा होगा महिलाएं जब भी गरबा करती हैं तो तीन ताली का प्रयोग करती हैं लेकिन क्या आप जानते हैं इस तीन ताली का रहस्य क्या है। नहीं तो घबराइए मत हम बताते हैं, इसके साथ जुड़ा रहस्य। कहा जाता है कि यह पूरा ब्रह्मांड ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आसपास ही घूमता है। ऐसा माना जाता है कि तीन तालियों के माध्यम से इन तीन देवों की कलाओं को एकत्र कर शक्ति का आह्वान किया जाता है।


कहा जाता है कि ताली की आवाज़ से तेज निर्मित होता है जिसकी सहायता से शक्ति स्वरूप मां अंबा जागृत होती हैं। ताली बजाकर इसी तेज रूपी मां अंबा की आराधना की जाती है। 

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गरबे का चलन
कहा जाता है कि भोपाल में आज़ादी से पहले नवाबों का राज हुआ करता था, उस दौरान गुजरात के अलावा और कहीं भी गरबा आयोजित नहीं होता था। यह नृत्य केवल इसी राज्य की शान था और अन्य किसी जगह पर अगर गरबा होता भी था तो केवल मनोरंजन के लिए और वह भी गुजरातियों द्वारा ही 


आजादी के बाद जब गुजराती समुदायों का अपने प्रदेश से बाहर निकलना शुरू हुआ तब उनके साथ यह परंपरा भी अन्य प्रदेशों में पहुंच गई। मध्यप्रदेश में 70 के दशक में गरबा की आमद हुई। इसके बाद 80 के दशक तक तो जैसे गरबा ने धीरे-धीरे और भी बहुत सारे राज्यों और कस्बों में अपनी जगह बना ली।

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आज के दौर में गरबा को भारत के विश्व विख्यात नृत्यों में से एक माना जाता है। अब यह कोई आम नृत्य नहीं रहा, विश्वभर में इस नृत्य का प्रचार किया जाता है। न केवल त्योहारों के दौरान, वरन समय-समय पर यह नृत्य भारतीय साहित्य को दर्शाता रहता है।
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