क्या है श्राद्ध पक्ष में कुशा के प्रयोग का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण?

Edited By Jyoti,Updated: 09 Sep, 2020 04:33 PM

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जैसे कि सब जानते हैं 02 सितंबर से इस साल का पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है, जिसका समापन 17 सितंबर को होगा। बताया जाताह है इस पूरे पक्ष में लोग अपने परिजनों का श्राद्ध

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जैसे कि सब जानते हैं 02 सितंबर से इस साल का पितृ पक्ष आरंभ हो चुका है, जिसका समापन 17 सितंबर को होगा। बताया जाताह है इस पूरे पक्ष में लोग अपने परिजनों का श्राद्ध, पितर तर्पण तथा पिंडदान आदि जैसे कर्मकांड संपन्न करते हैं। धार्मिक शास्त्रो में ये सारे दिनों से जुड़े कई नियम आदि बताए गए हैं। जिन्हें अपनाना प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए आवश्यक होता है जो इन दिनों में अपने पितरों का पूर्वजों का श्राद्ध करता है। इसमें एक नियम है ऐसा है श्राद्ध में कुश का उपयोग। कहा जाता है कि पितर तर्पण में कुश का खासा महत्व रहचा है, जो एक प्रकार की घास होती है। सनातन धर्म मे कुशा को विशेष महत्व प्रदान प्राप्त है। यही कारण है कि हर प्रकार के शुभ तथा धार्मिक कार्य को संपन्न करते समय इसका प्रयोग किया जाता है।

मगर क्यों इसे इतना महत्व प्रदान है, इससे जुड़े 2 तथ्य प्रचलित, धार्मिक भी और वैज्ञानिक भी। तो चलिए जानते हैं इन दोनों के बारे में- 
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धर्मग्रंथों में कुश का महत्व- 
कहा जाता है विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रंथों में कुश का महत्व बताया गया है। अथर्ववेद में बताया गया है कि कुशा क्रोध को नियंत्रित करने में सहायक होती है। साथ ही साथ इसकी प्रयोग एक औषधि के रूप में भी किया जाता है। कुछ धार्मिक किंवदंतियां ये भी हैं कि कुशा भगवान विष्णु के रोम से निर्मित हुई है।  

इसकी उत्पत्ति से जुड़ी अन्य जानकारी मत्सय पुराण में पढ़ने को मिलती है कि जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार धारण कर हिरण्याक्ष नामक राक्षस का वध कर फिर से धरती को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थ तब इन्होंने अपने शरीर पर लगे पानी को झटका जिससे इनके शरीर के कुछ बाल पृथ्वी पर आकर गिर गए। जिन्होंने कुश का रूप धारण कर लिया। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद से कुश को पवित्र माना जाने लगा।
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इसका एक प्रसंग महाभारत से भी संबंधित है। कथाओं के अनुसार एक बार जब गरुड़देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आ रहे थे तब कुछ देर के लिए उन्होंने कलश को जमीन पर कुश नामक घास पर रख दिया था। कुश पर अमृत कलश रखने से इसका पवित्रता बढ़ गई। 

इसके अलावा एक किंवदंति ये भी है कि महाभारत में जब कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण किया तब इसमें उन्होंने कुश का ही उपयोग किया था। जिसके बाद ये मान्यता प्रचलित हो गई कि श्राद्ध पक्ष में इसे धारण करके कर्मकांड करने वाले जातक पर उसके पितरदेव अधिक प्रसन्न होते हैं।

वैज्ञानिक महत्व-
कहा जाता है सनातन धर्म से संबंधित हर चीज़ का वैज्ञानिक महत्व बताया गया है। कुश से जुड़े वैज्ञानिक महत्व पर दृष्टि डालें तो कुश घास के इस्तेमाल पीछ कई वैज्ञानिक कारण छिपे हुए हैं। बताया जाता है कि कुश घास में एक तरह का प्यूरिफिकेशन का गुण होता है। जिसका उपयोग चीज़ों का शौद्ध करने के लिए तथा दवाईयों के रूप में किया जाता है। बताया जाता है कि इसका शोध करने से पता चला है कि कुश में एंटी ओबेसिटी, एंटीऑक्सीडेंट और एनालजेसिक कंटेंट मौजूद रहता है।
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