क्या है होलाष्टक पर शुभ कार्य न करने का असल कारण?

Edited By Jyoti,Updated: 29 Feb, 2020 06:40 PM

what is the real reason for not doing auspicious work on holashtak

आप में से बहुत से लोगों ने सुना होगा कि होलाष्टक पर शुभ कार्य किए जाने वर्जित होते हैं। मगर बहुत कम लोग है जिन्हें इसका मुख्य कारण पता है।

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आप में से बहुत से लोगों ने सुना होगा कि होलाष्टक पर शुभ कार्य किए जाने वर्जित होते हैं। मगर बहुत कम लोग है जिन्हें इसका मुख्य कारण पता है। दरअसल शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर होलिका दहन यानि रंगों की होली से एक दिन तक चलता है। इसकी कुल अवधि 8 दिन की होती है। जिस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य को अंजाम नही दिया जाता है। ज्योतिष विशेषज्ञ बताते हैं कि इस दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य करना निषेध होता है। बता दें इस बार होलाष्टक 03 मार्च से 09 मार्च तक चलेगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार होलाष्टक को लेकर कुछ मान्यताएं प्रचलित हैं। जिसमें इसके पहले दिन को लेकर जो मान्यता है वो देवों के देव महादेव से जुड़ी हुई है। कथाओं में वर्णित है कि इस दिन भगवान शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोल उसे भस्म कर दिया था। इसके अलावा इससे संबंधित एक धार्मिक कारण और है जिसके मुताबिक होली से आठ दिन पहले यानि अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक प्रह्लाद को बहुत अधिक यातनाएं दी गई थी। आईए विस्तारपूर्वक जानते हैं इन कथाओं के बारे में- 
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ऐसा कहा जाता है कि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी के दिन ही प्रह्लाद को बंदी बनाया गया था। इसके बाद उसे मारने के लिए तरह-तरह से कष्ट दिए जा रहे थे। परंतु प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति के कारण हर यातना से बचता चला गया। यह देखकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आज्ञा दी कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाएं।क्योंकि उसकी बहन होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। परंतु होलिका जब प्रह्लाद को आग में लेकर बैठी तो प्रह्लाद की भक्ति के आगे उसके वरदान की शक्ति कमज़ोर पड़ गई और वह खुद जलकर भस्म हो गई। 

ऐसी मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु नृसिंह रूप में प्रगट हुए और हिरण्यकश्यप का वध किया। यही कारण है प्रह्लाद के यतनाओं भरे उन आठ दिनों को अशुभ माना जाता है। 
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तो अन्य प्रचलित कथा के अनुसार कामदेव ने शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश की। जिसके बाद भगवान शिव ने कामदेव पर क्रोधित होकर फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को भस्म कर दिया। 
 

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