मकर संक्रांति का भीष्म पितामह से क्या है संबंध

Edited By Lata,Updated: 11 Jan, 2019 11:55 AM

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इस बात से तो सब वाकिफ ही हैं कि इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा।

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इस बात से तो सब वाकिफ ही हैं कि इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य मकर राशि पर 14 जनवरी की शाम 7ः50 पर आएंगे तो पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब भी संक्रांति सूर्यास्त के बाद आती है तो अगले दिन ही मनाने का विधान होता है। पूरे भारत में ये त्योहार अपने अलग अंदाज और अलग परंपरा के साथ मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस दिन से सभी शुभ कार्य व मांगलिक कार्य शुरु हो जाते हैं। इसलिए इस दिन दान, स्नान, तिल व गुड़ का विशेष महत्व माना जाता है। लेकिन आज हम आपको इस पावन दिन पर एक ऐसी कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जो शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। हम बात कर रहे हैं महाभारत के पात्र भीष्म पितामह की। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही दिन क्यों चुना था। अगर नहीं तो चलिए हम आपको इसके पीछे का कारण बताते हैं। 
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पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत का युद्ध करते हुए पितामह भीष्म ने वचनबद्ध होने के कारण कौरव पक्ष की ओर से युद्ध किया था किंतु सत्य एवं न्याय की रक्षा के लिए उन्होंने स्वयं ही अपनी मृत्यु का रहस्य अर्जुन को बता दिया था। अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में भीष्म पर इस कदर  बाणों की वर्षा कर दी कि उनका शरीर बाणों से बिंध गया और वह बाण शय्या पर लेट गए किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति व प्रभु कृपा के चलते मृत्यु का वरण नहीं किया क्योंकि उस समय सूर्य दक्षिणायन था। जैसे ही सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया और सूर्य उत्तरायण हो गया, भीष्म ने अर्जुन के बाण से निकली गंगा की धार का पान कर प्राण त्याग दिए और मोक्ष प्राप्त किया। 
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मकर संक्रांति पर विशेष रूप से उत्तरी भारत में गंगा स्नान करना विशेष पुण्य का निमित्त माना जाता है और इस दिन लाखों लोग गंगा स्नान करते हैं। क्योंकी मकर संक्रांति का ही वह दिन था जब गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
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मकर संक्रांति को सूर्य एवं अग्रि की पूजा से भी जोड़ा जाता है। इस दिन तिल का दान करना विशेष महत्व रखता है। उत्तर-प्रदेश में तिल तथा तिलकुट का दान एवं खिचड़ी (दाल एवं चावल) और अनाज का दान करते हैं तो राजस्थान में पुए (पूड़े) तिल, तिलकुट व बाजरा जैसे मोटे अनाज के दान के साथ-साथ पतंगबाजी भी होती है।      
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