ब्रह्मा जी, दिशाओं या फिर समुद्र मंथन से, कैसे हुई थी चंद्रमा की उत्पत्ति?

Edited By Jyoti,Updated: 20 Feb, 2020 01:26 PM

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जिस तरह हिंदू धर्म में सूर्य  देवता को खास अहमियत प्रदान है। ठीक उसी तरह चंद्रमा को भी अधिक महत्व दिया जाता है। तो वहीं ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों की अपनी खास विशेषता बताई गई है।

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जिस तरह हिंदू धर्म में सूर्य  देवता को खास अहमियत प्रदान है। ठीक उसी तरह चंद्रमा को भी अधिक महत्व दिया जाता है। तो वहीं ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों की अपनी खास विशेषता बताई गई है। आज हम आपको बताने वाले हैं बेहद सुंदर व आकर्षक चमकीला ग्रह के बारे में। जी हां, आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहे हैं अपनी चमक से दूसरों को शांति प्रदान करने वाले चंद्रमा की। ने केवल ज्योतिष शास्त्र में बल्कि हिंदू धर्म में इसका अधिक महत्व है। तो आइए जानते है चंद्रमा से जुड़ी खास बातें-
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सबसे पहबले बता दें कहा जाता है कि दिन-रात, महीना-साल एवं  प्रतिपदा से लेकर अमावस्या पूर्णिमा सब तिथियां चंद्रमा पर ही निर्भर करती हैं। इसकी उतरती और चढ़ती कलाओं से तिथियों का, माह के कृष्ण तथा शुक्ल पक्षों का निर्धारण होता है। इसके अलावा प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली भी चंद्रमा की स्थिति के अनुसार ही बनती है। बताया जता है कुंडली के जिस भाव में चंद्रमा होता है, उसी के अनुसार जातक की चंद्र राशि बनाई जाती है। वेदों में चंद्र को मन का कारक कहा जाता है।

चलिए अब जानते हैं पुराणों के आधार चंद्रमा की उत्पति कैसे का सत्य-
हिंदू धर्म के अग्नि पुराण के मुताबिक जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी तो सबसे पहले मानस पुत्रों को बनाया था। उनमें से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ। जिनकी एक संतान हुई, जो चंद्रमा हैं। आगे पद्म पुराण में वर्णन मिलता है कि ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी। इनकी आज्ञा पाकर महर्षि अत्रि ने एक कठोर तप प्रारंभ किया।
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जिस दौरान यानि तप काल के समय एक दिन उनकी आंखों से जल की कुछ बूंदें गिरी जो काफ़ी प्रकाशमय थी। तब दिशाओं ने स्त्री रूप में आ कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया। मगर उन बूंदों को दिशाएं धारण न रख सकीं और उन्हें त्याग दिया।

कहा जाता है उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने चंद्रमा के नाम से प्रख्यात किया। इसके अलावा स्कन्द पुराण में चंद्रमा की उतत्ति को लेकर कहा जाता है कि सागर मंथन के दौरान देवों और असुरों ने मिलकर जब किया समुद्र को मंथा था तब चौदह रत्न निकले थे। उन्हीं 14 रत्नों में से चंद्रमा थे।
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