Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Feb, 2018 04:23 PM
एक बार भगवान शिव के मन में एक बड़े यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। विचार आते ही वे शीघ्र यज्ञ प्रारंभ करने की तैयारियों में जुट गए। सारे गणों को यज्ञ अनुष्ठान की अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंप दी गई।
एक बार भगवान शिव के मन में एक बड़े यज्ञ के अनुष्ठान का विचार आया। विचार आते ही वे शीघ्र यज्ञ प्रारंभ करने की तैयारियों में जुट गए। सारे गणों को यज्ञ अनुष्ठान की अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंप दी गई। सबसे बड़ा काम था यज्ञ में सारे देवताओं को आमंत्रित करना। आमंत्रण भेजने के लिए पात्र व्यक्ति का चुनाव किया जाना था, जो समय रहते सभी लोकों में जाकर वहां के देवताओं को सम्मान से निमंत्रण दे। ऐसे में किसी ऐसे व्यक्ति का चयन किया जाना था, जो तेजी से जाकर ये काम कर दे, लेकिन भगवान शिव को ये भी डर था कि कहीं आमंत्रण देने की जल्दी में देवताओं का अपमान ना हो जाए।
इसलिए उन्होंने इस काम के लिए गणेश का चयन किया। गणेश बुद्धि और विवेक के देवता हैं। वे जल्दबाजी में भी कोई गलती नहीं करेंगे, ये सोचकर शिव ने गणपति को बुलाया और उन्हें समस्त देवी-देवताओं को आमंत्रित करने का काम सौंपा। गणेश ने इस काम को सहर्ष स्वीकार किया, लेकिन उनके साथ समस्या यह थी कि उनका वाहन चूहा था, जो बहुत तेजी से चल नहीं सकता था। गणेश ने काफी देर तक चिंतन किया कि किस तरह सभी लोकों में जाकर आदरपूर्वक सारे देवताओं को यज्ञ में शामिल होने का आमंत्रण दिया जाए। बहुत विचार के बाद उन्होंने सारे आमंत्रण पत्र उठाए और पूजन सामग्री लेकर ध्यान में बैठे शिव के सामने बैठ गए।
गणेश ने विचार किया कि यह तो सत्य है कि सारे देवताओं का वास भगवान शिव में है। उनको प्रसन्न किया तो सारे देवता प्रसन्न हो जाएंगे। ये सोचकर गणेश ने शिव का पूजन किया और सारे देवताओं का आह्वान करके सभी आमंत्रण पत्र शिव को ही समर्पित कर दिए। सारे आमंत्रण देवताओं तक स्वत: पहुंच गए और सभी यज्ञ में नियत समय पर ही पहुंच गए। इस तरह गणेश ने एक मुश्किल काम को अपनी बुद्धिमानी से आसान कर दिया।