Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Mar, 2019 03:31 PM
लकवा का चिकित्सा और आयुर्वेद क्षेत्र में उपचार है। अगर सही समय पर इसका उचित उपचार कराया जाए तो यह ठीक हो जाता है अन्यथा लकवा का मरीज अपना पूरा जीवन आधे मृत शरीर के साथ ही बिताता है। शरीर के लकवा ग्रस्त अंग में टेढ़ापन आ जाता है।
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लकवा का चिकित्सा और आयुर्वेद क्षेत्र में उपचार है। अगर सही समय पर इसका उचित उपचार कराया जाए तो यह ठीक हो जाता है अन्यथा लकवा का मरीज अपना पूरा जीवन आधे मृत शरीर के साथ ही बिताता है। शरीर के लकवा ग्रस्त अंग में टेढ़ापन आ जाता है। यह लकवा किन लोगों को लगता है। इस पर हम ज्योतिषीय दृष्टि डालते हैं वैसे तो सभी ग्रह किसी न किसी रोग के स्वामी होते हैं। प्रत्येक ग्रह के पास कई-कई रोगों का विभाग होता है। ऐसे ही लकवा को कुंडली में देखने के लिए बुध पर शनि का दूषित प्रभाव हो और छठा भाव, छठे भाव का स्वामी भी शनि से दूषित हो तो पक्षाघात का रोग होता है।
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कारण
कन्या लग्न, बुध छठा भाव और शनि पर भी पाप प्रभाव हो तो जातक लकवा से ग्रस्त हो जाता है। कुंडली में धनु राशि और कुंभ राशि पर भी अगर दूषित ग्रहों का प्रभाव हो तो भी जातक को लकवा लगने की संभावना होती है।
शनि की गति बहुत धीमी है और शनि लंगड़ाकर चलता है। मंगल रक्त का कारक है। जब शनि और मंगल छठे भाव, छठे भाव के स्वामी, लग्र, लग्न के स्वामी और बुध ग्रह को अपनी दृष्टि अथवा युति से पीड़ित कर देंगे तो जातक को पक्षाघात, लकवा हो जाता है।
शनि और मंगल मिलकर बुध छठा भाव, छठे भाव के स्वामी, द्वितीय भाव, द्वितीय भाव के स्वामी और गुरु पर अपना दूषित प्रभाव करेंगे तो जातक के मुख मेें लकवा रोग हो जाएगा, उसका मुख टेढ़ा हो जाता है।
जब शनि आदि से सूर्य और द्वितीय भाव, द्वितीय भाव का स्वामी और बुध ग्रह पीड़ित होगा तो गले से ऊपर के अंगों में लकवा होने की संभावना होती है।
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