Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Apr, 2019 01:31 PM
महाराष्ट्र में एक संत हुए एकनाथ। वह तपस्वी महात्मा थे और बड़े ही परोपकारी व सरल स्वभाव के थे। एक दिन नदी में स्नान करने के बाद वह अपने निवास स्थान की ओर लौट रहे थे। रास्ते में जब वह एक बस्ती से गुजर रहे थे तो
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महाराष्ट्र में एक संत हुए एकनाथ। वह तपस्वी महात्मा थे और बड़े ही परोपकारी व सरल स्वभाव के थे। एक दिन नदी में स्नान करने के बाद वह अपने निवास स्थान की ओर लौट रहे थे। रास्ते में जब वह एक बस्ती से गुजर रहे थे तो उनके सिर पर अचानक पानी गिर पड़ा। एकनाथ ने ऊपर की ओर देखा तो पाया कि एक व्यक्ति मिट्टी के ऊंचे टीले पर बैठा कुल्ला कर रहा है। वही पानी उनके सिर पर गिर गया था मगर उन्होंने न तो कोई रोष दिखाया और न ही नापसंदगी के भाव उनके चेहरे पर आए। एक शब्द भी बोले बगैर सहज भाव से वह नदी की तरफ लौट गए।उन्होंने नदी में दोबारा स्नान किया और फिर उसी रास्ते पर चल दिए मगर वह व्यक्ति उसी स्थान पर था। उसने इस बार फिर जान-बूझ कर, शायद उनकी प्रतिक्रिया देखने के इरादे से, उन पर कुल्ला कर दिया। इस बार भी संत एकनाथ बिना कोई प्रतिक्रिया दिए नदी की तरफ लौट गए। उस दिन यही क्रम चलता रहा। एकनाथ बार-बार स्नान करते और वह दुष्ट व्यक्ति बार-बार उन पर कुल्ला कर देता। पूरे 108 बार ऐसा हुआ। अंत में उस दुष्ट व्यक्ति से नहीं रहा गया। उसे लगा कि ऐसा व्यवहार किसी सामान्य व्यक्ति का नहीं हो सकता। जरूर यह कोई पहुंचे हुए महात्मा हैं।
वह संत के चरणों में झुक कर बोला, ‘‘महाराज, मेरी दुष्टता को माफ कीजिए। मैंने आपको बहुत परेशान किया, फिर भी आपका धीरज नहीं डिगा। मुझे क्षमा कर दीजिए।’’
महात्मा एकनाथ ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘बेफिक्र रहो, चिन्ता करने जैसी कोई बात नहीं है। तुमने मुझ पर मेहरबानी की। आज मुझे 108 बार स्नान करने का जो सौभाग्य प्राप्त हुआ, उसकी वजह तुम ही हो। कितना उपकार है तुम्हारा मेरे ऊपर।’’
संत के कथन से वह व्यक्ति पानी-पानी हो गया।
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