जब युधिष्ठिर हो गए थे कंगाल तो वेदव्यास ने ऐसे की उनकी मदद

Edited By Jyoti,Updated: 20 Apr, 2019 10:56 AM

when yudhisthira became poor vedavas had helped him in such a way

हिंदू धर्म में जैसे रामायण, श्रीमद्‍भगवद्‍गीता आदि को महत्व प्रदान है। ठीक उसी तरह महाभारत भी हिंदू धर्म का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ माना जाता है। ये एक ऐसा ग्रंथ है जिसे हमे जितना जानने की कोशिश करते हैं उसमें उतना ही रहस्य नज़र आता जाता है

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हिंदू धर्म में जैसे रामायण, श्रीमद्‍भगवद्‍गीता आदि को महत्व प्रदान है। ठीक उसी तरह महाभारत भी हिंदू धर्म का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ माना जाता है। ये एक ऐसा ग्रंथ है जिसे हमे जितना जानने की कोशिश करते हैं उसमें उतना ही रहस्य नज़र आता जाता है। इसका एक-एक पात्र महाभारत के इतिहास में अहम भूमिका रखता है। तो चलिए आपको आज इसके एक ऐसा ही पात्र के बारे में बताते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के अलावा ये एकलौते ऐसे पात्र थे, जिन्हें महाभारत के युद्ध में होने वाली हर घटना का पहले से आभास था। परंतु इनके बारे में महाभारत में ज्यादा उल्लेख पढ़ने को नहीं मिलता। तो चलिए आज हम आपको इस पात्र से जुड़े उस प्रसंग के बारे में बताते हैं जिसके अनुसार युद्ध के बाद ये एक दम कंगाल हो गए थे।
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बता दें हम बात कर रहे हैं महाकाव्य महाभारत के पांच पाण्डवों के सबसे बड़े युधिष्ठिर की, जो पांडु और कुंती के पहले पुत्र थे। इन्हें यानि युधिष्ठिर को धर्मराज (यमराज) पुत्र भी कहा जाता है। वो भाला चलाने में निपुण थे और वे कभी झूठ नहीं बोलते थे।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद जब पांडवों के पास अश्वमेध यज्ञ करके के लिए धन नहीं बचा था। तब महर्षि वेदव्यास के कहने पर पांडव हिमालय से धन लेकर आए। हस्तिनापुर का राजा बनने के बाद एक दिन महर्षि वेदव्यास युधिष्ठिर से मिलने आए। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि अपने कुल के भाई-बंधुओं की शांति के लिए आपको अश्वमेध यज्ञ करना चाहिए। महर्षि वेदव्यास की बात सुनकर युधिष्ठिर ने उन्हें कहा कि मेरे पास इस समय दक्षिणा में देने लायक भी धन नहीं है तो मैं इतना बड़ा यज्ञ कैसे कर सकता हूं। तब महर्षि वेदव्यास ने उन्हें बताया कि पहले समय में इस पृथ्वी के राजा महर्षि मरुत थे। जिन्होंने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था। इस यज्ञ में उन्होंने दान में ब्राह्मणों को बहुत सोना दिया था।
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परंतु सोना बहुत अधिक होने के कारण ब्राह्मण उसे अपने साथ नहीं ले जा सके। कहा जाता है कि वह सारा सोना आज भी हिमालय पर है। जिससे आप अश्वमेघ यज्ञ किया कर सकते हैं। कहा जाता है कि इसके बाद युधिष्ठिर ने महर्षि वेदव्यास द्वारा बताए गए इस काम को वैसा ही करने का निर्णय लिया था, जैसे उन्होंने बताया था। 
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