Kundli Tv- जब यमराज को करनी पड़ी मौत से मुलाकात

Edited By Jyoti,Updated: 10 Nov, 2018 04:25 PM

when yumraj had to face death

सभी ये तो जानते ही हैं कि व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद वो उसकी आत्मा स्वर्ग या नर्क जाती है। जहां यमराज से उसकी मुलाकात होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं इंसानों के प्राण छीनने वाले, इंसानों की मौत के बाद स्वर्ग या नर्क का रास्ता दिखाने वाले देवता...

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सभी ये तो जानते ही हैं कि व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद वो उसकी आत्मा स्वर्ग या नर्क जाती है। जहां यमराज से उसकी मुलाकात होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं इंसानों के प्राण छीनने वाले, इंसानों की मौत के बाद स्वर्ग या नर्क का रास्ता दिखाने वाले देवता को भी किसी ने मौत के घाट उतार दिया था। 
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मार्कंडेपुराण के मुताबिक यमराज सूर्य के पुत्र कहे गए हैं। एक बार जब विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा ने अपने पति सूर्य को देखकर डर से आँखें बंद कर ली, तब सूर्य को अपनी पत्नी की ये गुस्ताखी पसंद नहीं आई। जिसके बाद गुस्से में सूर्य देव ने अपनी पत्नी को श्राप दे दिया, कि जाओ तुम्हें जो पुत्र होगा। वो लोगों के प्राण लेने वाला होगा। इस पर जब संज्ञा ने बड़ी चंचलता से सूर्य की ओर देखा तब फिर सूर्यदेव ने कहा कि तुम्हें जो कन्या होगी, वो इसी प्रकार चंचलतापूर्वक नदी के रूप में बहा करेगी। 

इसके बाद सूर्य देव के श्राप की वजह से संज्ञा को जुड़वा पुत्र और पुत्री हुए। जिसमें से पुत्र का नाम यम रखा गया और पुत्री यमुना के नाम से प्रसिद्ध हुई। तो चलिए अब आपको बताते हैं कि यम के देवता खुद मौत के घाट कैसे उतर गए। और उस समय ऐसा क्या खेल हुआ जिसने यम को भी नहीं वख्शा। हम आपको यमराज के मौत की कहानी डीटेल में बताएंगे।
PunjabKesariवेदों और पुराणों में यम के मौत की एक कहानी बताइ गई है बता दें कि यमराज के इसके अलावा भी कई नाम हैं। वे नाम हैं- यम, धर्मराज, मृत्यु, अंतक, वैवस्वत, काल, सर्वभूत्क्ष्य, औदुंबर, दहन, नील, परमेष्टि, वृकोदर, चित्र और चित्रगुप्त। बहुत समय पहले एक श्वेतमुनि थे जो भगवान शिव के परम भक्त थे।वे शिव की पूरे मन से अराधना करते थे। शिव की अराधना करते-करते श्वेतमुनि की मौत का समय नजदीक आ गया।

एक दिन श्वेतमुनि गोदावरी नदी के तट पर बनी अपनी कुटिया के बाहर शिव की अराधना कर रहे थे। ऐसे में जब उनकी मृत्यु का समय आया यमदेव ने उनके प्राण हरने के लिए मृत्युपाश को भेजा। लेकिन श्वेतमुनि अपने प्राणों का त्याग नहीं करना चाहते थे। इसलिए अपनी मौत से पीछा छुड़ाने के लिए उन्होंने सूझबूझ से काम लिया और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया। 
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जिसकी वजह से भैरव बाबा उनकी सुरक्षा के लिए पहरेदार बनकर कुटिया के बाहर खड़े हो गए। जब मृत्युपाश श्वेतमुनि के आश्रम पहुँचे तो देखा कि आश्रम के बाहर भैरव बाबा पहरा दे रहे हैं। धर्म और दायित्व में बंधे होने के कारण जैसे ही मृत्युपाश ने मुनि के प्राण हरने की कोशिश की तभी भैरव बाबा ने प्रहार करके मृत्युपाश को बेहोश कर दिया। जिससे वो जमीन पर गिर पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई ।ये देखकर यमराज को बहुत गुस्सा आया।और खुद धरती पर आकर भैरव बाबा को पाश में बांध लिया।

साथ ही श्वेतमुनि के प्राण हरने के लिए उनपर भी पाश डाला। जिसके बाद श्वेतमुनि यमराज के गुस्से से डर गए। और अपने ईष्टदेव महादेव को पुकारने लगे। और महादेव तो देवों के देव हैं वे तो ये सब पहले से देख रहे थे। तो तुरंत ही महादेव ने पुत्र कार्तिकेय को वहां भेजा। कार्तिकेय के वहाँ पहुँचने पर कार्तिकेय और यम देव के बीच घमासान युद्ध हुआ । कार्तिकेय के सामने यम देव ज्यादा देर तक टिक नहीं पाये और कार्तिकेय के एक प्रहार से यमराज ज़मीन पर गिर गये और उनकी मृत्यु हो गई। 
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भगवान सूर्य को जब यमराज की मृत्यु का समाचार लगा तो वे विचलित हो गये ।ध्यान लगाने पर ज्ञात हुआ कि उन्होंने भगवान शिव की इच्छा के विपरीत श्वेतमुनि के प्राण हरने चाहे। इस कारण यमराज को भगवान भोले के कोप को झेलना पड़ा ।यमराज सूर्यदेव के पुत्र हैं और इस समस्या के समाधान के लिए सूर्य देव भगवान विष्णु के पास गये ।भगवान विष्णु ने भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करने का सुझाव दिया।

सूर्य देव ने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिये और वरदान माँगने को कहा । तब सूर्य देव ने कहा कि हे महादेव, यमराज की मृत्यु के बाद पृथ्वी पर भारी असंतुलन फैला हुआ है ।अतः पृथ्वी पर संतुलन बनाये रखने के लिए यमराज को पुनः जीवित कर दें । तब भगवान शिव ने नन्दी से यमुना का जल मंगवाकर यम देव के पार्थिव शरीर पर छिड़के जिससे वे पुनः जीवित हो गये। तो दोस्तों इस कारण यमराज मौत के देवता होते हुए भी अपनी मौत को नहीं ठुकरा पाए थे।
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